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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग २
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वि.सं. २०५२ में वर्धमान तप की ३५ वीं ओली की । ओली का पारणा न करते हुए आचार्य पद के ३६ उपवास संलग्न किये । इस तरह यह भी ७२ दिन की बड़ी तपश्चर्या हुई !!!
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वि.सं. २०५२ में दि. १३-६-९६ से बेले के पारणे आयंबिल करते हुए उपरोक्त प्रकार से वर्षीतप का पारणा ५१ उपवास के बाद दि. ९-५-९७ को किया और केवल १२ दिन के पारणे के बाद दि. २२-५-९७ से वर्धमान तप की ३६ वीं ओली प्रारंभ करदी । उसका पारणा दि. २८--६-९७ को करके दूसरे दिन से उपर निर्दिष्ट १७५ उपवास की महान तपश्चर्या का प्रारंभ कर दिया । उस में ९९ दिन तक दिन में दो बार गरम पानी का सेवन, २५ दिन तक अवड़ के समय के बाद १ बार पानी का सेवन और अन्त के ५१ उपवासं चौविहार किए ! इस महान तपश्चर्या के दौरान ८२ वें दिन शत्रुंजय महातीर्थ की पैदलयात्रा की ! और ९० वें उपवास के दिन शंखेश्वरजी महातीर्थ में आयोजित अनुमोदना-बहुमान समारोह में पधारी थीं ! (तस्वीर के लिए देखिए पेज नं. 22 के सामने) और १५७ वें दिन गिरनारजी की एवं १५९ वें दिन शत्रुंजय महातीर्थ की पुनः यात्रा की । दि. २१ -१२-९७ के दिन उड़द के एक दाने ले आयंबिल द्वारा १७५ उपवास की महान तपश्चर्या का पारणा किया !!!
उसके बाद दि. २७-१२-९७ से अखंड ५०० आयंबिल चालु किये हैं। आयंबिल में सिर्फ गेहूँ की ४ रोटियाँ बिना नमक की एवं गर्म जल का सेवन करती हैं, साथ में ठाम चौविहार करती हैं !!! इन ५०० आयंबिल के दौरान ही दि ४-६ - ९८ से १२४ उपवास की महान तपश्चर्या का प्रारंभ किया । जिसमें प्रारंभ के ४० उपवास तक अवड्ड के समय के बाद केवल १ बार गरम जल का सेवन किया और पिछले ८४ उपवास बिना पानी के चौविहार ही किये !!! दि. ६-१०-९८ के दिन एक दाने के आयंबिल से पारणा करने के बाद लगातार उपर्युक्त प्रकार से आयंबिल की तपश्चर्या चालु ही है । बीच में दि. २८-३-९८ से लगातार चौविहार, २१ उपवास एवं एक बार १२ उपवास चौविहार भी किए इन सभी उपवासों ( १२४ +२१+१२ ) की गिनती ५०० आयंबिल में नहीं की है। उपर्युक्त प्रकार से ४०० आयंबिल पूरा होने के बाद अंतिम १०० दिन केवल १ दाने के आयंबिल चालु हैं । ५०० आयंबिल के उपर तुरंत चौविहार मासक्षमण करके
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