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________________ ३७४ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग २ थी इसलिए वह बहुत व्याकुल हो उठा । उसने पाँचवे ही दिन अपनी माँ को पत्र लिखकर ऐसी टूरमें अपने को भेजने के लिए उपालंभ दिया । किशोर वय में भी प्रभुभक्ति की कैसी लगन ! (३) एक भारतीय जैन युवक की सगाई अमरीका में उत्पन्न हुई जैन कन्या के साथ हुई । सगाई होते ही युवकने अपनी भावी पत्नी को कह दिया कि, "जब तक तू पाँच प्रतिक्रमण, चार प्रकरण एवं छह कर्मग्रंथ अर्थ के साथ कंठस्थ नहीं करेगी तब तक शादी नहीं होगी । यह सुनते ही युवती स्तब्ध हो गयी । उसे तो केवल नवकार मंत्र ही आता था । मगर भावी पति की अपेक्षा के अनुसार उसने उपर्युक्त सूत्र, अर्थ के साथ कंठस्थ कर लिए बादमें ही दोनों की शादी हुई !!! (४) एक श्रावकने अपने वील में लिखा था कि, 'मेरे शरीर का अग्नि संस्कार, मेरे मरने के बाद दो घड़ी ( ४८ मिनट) में तुरंत कर देना, ताकि संमूर्छिम जीवों की हिंसा न हो !!! (५) माणेकलाल सेठ उत्तम श्रावक थे । अपने गृह जिनालय में से ८० हजार रूपयों के मूल्य की नीलम रत्न की जिन प्रतिमा की चोरी करके, उसको बेचकर अपना कर्ज चुकाने के लिए तैयार हुए साधर्मिक को उन्होंने पकड़ लिया और अपने घरमें मिष्टान्न के द्वारा उसकी साधर्मिक भक्ति करने के बाद नकद ८० हजार रूपये की प्रभावना देकर अपने परम प्रिय परमात्मा का बिम्ब वापस प्राप्त किया !!! (६) सुश्रावक श्री कमलसीं भाई के ज्येष्ठ सुपुत्र की सगाई के प्रसंग में पाटण (गुजरात) के महान जैन सुश्रावक श्री नगीनदासभाई करमचंद संघवीने दो तोला सुवर्ण का हार भेंट के रूप में दिया । आर्थिक दृष्टि से सामान्य स्थितिवाले कमलसींभाई ने कहा, "आपके जैसे धर्मात्मा यदि सगाई के रूप सांसारिक व्यवहार की इस तरह अनुमोदना करेंगे तो फिर अब 'धर्म' कहाँ देखने मिलेगा ?" ऐसा कहकर उन्होंने हार वापस लौटा दिया । • (७) श्राद्धरत्न श्री रजनीभाई देवड़ी और शांतिचंद बालुभाई ने आजसे ९ साल पूर्व में तीर्थाधिराज श्री शत्रुंजय के १८ अभिषेक कराये
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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