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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग ३७३ १३ के दिन श्री शत्रुंजय महातीर्थ की ६ कोस की परिक्रमा भी नियमित रूप से देते हैं । - १६० २ इस तरह प्रत्येक पूर्णिमा के दिन अपने समस्त सांसारिक कार्यों को छोड़कर नियमित रूपसे तीर्थयात्रा और प्रभुभक्ति के लिए सैंकड़ों कि.मी. की यात्रा करते हुए और घंटों तक कतारमें खड़े रहकर प्रभुपूजा की प्रतीक्षा करते हुए सभी यात्रिकों की हार्दिक अनुमोदना । भले इनमें से कोई गतानुगतिकता से या ऐहिक फलाकांक्षा से आज यात्रा करते होंगे मगर श्री पार्श्वनाथ प्रभुजी के अचिंत्य प्रभाव से उनके हृदय में भी एक न एक दिन जरूर सम्यक् भावों का उदय होगा और निष्काम भाव से, सम्यक् तीर्थयात्रा और प्रभुभक्ति द्वारा उनकी आत्मा भी उर्ध्वगामी बनेगी ऐसी आशा रखनी अनुचित नहीं होगी । धर्मनिष्ठा के अनुमोदनीय प्रसंग [प. पू. पंन्यास प्रवर श्री चन्द्रशेखरविजयजी म.सा. द्वारा लिखित "मारी तेर प्रार्थनाओ" और " मुनि जीवननी बालपोथी" में से साभार अद्भुत ] (१) एक घर की दीवार के उपर वर्षा के पानी के कारण से नील (अनंतकाय वनस्पति ) जमी हुई थी । उसी दिवार का स्पर्श करती हुई एक तिजोरी पड़ी हुई थी । उसको वहाँ से हटाने की जरूरत थी, मगर वैसा करने से नील के अनंत जीवों की संभावना होने से दोनों भाईओं में से किसीने भी उस तिज़ोरी को हटाई नहीं । कुछ महिनों के बाद ग्रीष्म ऋतुमें जब नील स्वयमेव सुख गयी उसके बाद ही उस तिजोरी को वहाँ से हटाई गयी । (२) १६ साल की उम्र का कोलेजीयन किशोर कोलेज द्वारा आयोजित विदेश के प्रवास में अपनी माँ के आग्रह से गया । २० दिन का कार्यक्रम था । इस प्रवास में जिनपूजा - प्रभुदर्शन की कोई शक्यता नहीं
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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