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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ शिक्षण के बारे में किरणभाई के विचार मौलिक और क्रांतिकारी हैं। उनकी शिक्षण पद्धति में ढेर सारी माहिती विद्यार्थीओं के दिमाग में ढूंस ढूंसकर भर देनेका अभिगम नहीं है । विद्यार्थी को परीक्षा का त्रास देने के पक्षमें वे नहीं है । मातृभाषा और अंग्रेजी की शिक्षा वे संभाषण और संवाद के द्वारा देते हैं ।
विज्ञान तो बालकों को प्रयोगशाला में ही सीखाना चाहिए ऐसा वे मानते हैं । गणित की नींव अंकगणित होनी चाहिए । केलक्युलेटर और कम्प्युटर के बिना विद्यार्थी सूदकी गिनती कर सके और लाभ-हानि का हिसाब लगा सके इतनी क्षमता यदि उसमें नहीं आती है तो वैसी गणितकी शिक्षा को वे अधूरी मानते हैं । इतिहास की शिक्षा प्रेरणात्मक कथाओं के रूपमें और भूगोल की शिक्षा पर्यटन और प्रवास के द्वारा देने में वे मानते हैं।
किरणभाई की शाला में पढता हुआ बालक एस.एस.सी. में पहुँचेगा तब तक उसको ३०० संस्कृत सुभाषित हँसते-खेलते हुए कंठस्थ हो गये होंगे। गुजराती, हिन्दी और अंग्रेजी में ५०० से अधिक कथाएँ, गीत और काव्य उसको आत्मसात् हो गये होंगे । उसका भाषाकोश अत्यंत समृद्ध होगा। अपनी आजीविका संप्राप्त कर सके वैसी कला भी वह जानता होगा ।
किरणभाई की इस समांतर लेकिन अधिक तेजस्वी शाला को देखकर मेरे -आपके जैसे अनेक लोगों को होता होगा कि, 'हम भी अपने बालक को इस तरह शिक्षण और संस्कार प्रदान कर सकें तो कितना अच्छा !' लेकिन किरणभाई जितना समय आदि का भोग अपने बालकों के लिए देना सभी माँबाप के लिए संभव नही होता है। शायद समय का भोग देने की तैयारी हो तो भी उतना ज्ञान नहीं होता है। इसलिए दक्षिण मुंबई के कुछ बुजुर्गों ने इकट्ठे होकर किरणभाई को विज्ञप्ति की कि, आप हमारे बच्चों को भी आप की शाला में दाखिल करें' । अपने बच्चों को स्कूल में से उठाकर इस तरह की शिक्षा देने के लिए करीब १० जितने श्रीमंत और शिक्षित माँ-बाप तैयार हो गये हैं । इन बालकों को ६ सालमें कक्षा ५ से लेकर १० तक की शिक्षा मौलिक पद्धति से दी जायेगी। यह शाला केवल ३ घंटे ही चलेगी। उसके बाद कोई होमवर्क