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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग
३५९
महिने में सेमिस्टर, ६ महिनों में टर्मिनल और फिर वार्षिक परीक्षा के हथोड़े उसके सिर पर लगाये जाते हैं। इन सबमें से पसार होने के बाद डिग्री मिलती है मगर उसकी भी जब कोई किंमत नही होती है तब वह हताश हो जाता है । उसको लगता है कि उसकी जिंदगी के सुवर्ण समान कई वर्ष बेकार हो गये । वह एक निष्फल और निराश नागरिक बनता है ।
मुंबई - गिरगाँव में रहते हुए किरणभाई शुकल ने इसी कारण से अपने दोनों बच्चों को स्कूल में से वापस उठा लिया है । पिछले ६ सालसे वे उनको सभी विषय स्कूल से भी अच्छी तरह से घरमें ही पढाते हैं । १२ सालकी श्रद्धा और १० साल का विश्वास आज अत्यंत खुश हैं । श्रद्धा ने अंग्रेजी माध्यम की स्कूलमें सिनियर के. जी. किया । उसके बाद शिक्षण के असहय बोझमें से अपनी बगीची के इस सुकोमल पुष्प को बचा लेने के लिए, संवेदनशील पिताके हृदय को धारण करनेवाले किरणभाई को हुआ कि वे स्कूल का त्रास ज्यादा सहन नहीं कर पायेंगे।
अध्यापक का व्यवसाय करते हुए किरणभाई करोड़पति श्रीमंतों के बालकों को टयुशन पढाते हैं । उनको आत्मविश्वास था कि स्कूल में ६ घंटों में जो पढ़ाया जाता है उससे बेहतर वे केवल २ घंटों में घर पर पढ़ा सकेंगे। इस तरह ६ साल पूर्वमें उनकी गृहशाला शुरू हुई । उनका पुत्र विश्वास उसमें ५ साल पहले शामिल हुआ । केवल २ घंटोंकी गृहशाला होने के कारण दोनों भाई-बहन को संगीत, चित्रकला, कविता, साहित्य, नृत्य इत्यादि कलाओं को सीखने के लिए बहुत समय मिलता था । इन क्षेत्रों में भी उनकी प्रतिभा का अच्छा निखार हुआ है । १२ सालकी श्रद्धा भारतनाटयम सीख रही है और विश्वास तबलावादन में पारंगत हो रहा है । वह १५ साल का होगा तब उसको नौकरी के लिए कहीं भी भीख माँगने के लिए नहीं जाना पड़ेगा । तबलावादन की कला द्वारा आजीविका को संप्राप्त करने की ताकत उसमें आ गयी होगी । उसी वक्त एस.एस.सी. की परीक्षा प्राप्त करने जितना व्यावहारिक शिक्षण भी उसने प्राप्त कर लिया होगा ।