SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 431
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५४ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग अग्रणीने जवानमलजी के पास अपनी भावना व्यक्त की कि उत्तमभाई को डोक्टर बनाना चाहिए । उत्तमभाईने सायन्स स्ट्रीम में पढना शरू किया लेकिन कुछ संयोगों के कारण उन्होंने अभ्यास अधूरा छोड़ दिया और अपने पिताजी के साथ धान्य के व्यवसायमें जुड गये । व्यवसाय के साथ साथ उन्होंने जैन मुनि श्री चंद्रशेखरविजयजी महाराज द्वारा लिखित किताबें पढना प्रारंभ किया । तब से उनके विचारों में परिवर्तन होने की शुरुआत हुई । सायन्स स्ट्रीम में पढे हुए बायोलोजी केमिस्ट्री इत्यादि व्यर्थ लगने लगे लेकिन दूसरा विकल्प क्या हो सकता है उसकी समझ नहीं थी । समय का चक्र चलता रहा । उत्तमभाई किम के सरपंच बने । आज भी पिछले १५ साल से वे किम के सरपंच हैं । यद्यपि शहरीकरण के असर से उनका परिवार बच नहीं सका है । आज जवानमलजी और उनके सुपुत्र रमणभाई, उत्तमभाई, शैलेषभाई एवं अजितभाई अहमदाबाद में धान्य का व्यवसाय करते हैं । उत्तमभाई की आत्मामें अभी भी किम के प्रति लगाव है । इ.स. १९९२ में उत्तमभाईने मुंबईके अतुल शाह में से हितररुचिविजयजी महाराज बने हुए जैन मुनिका नवसारी में प्रवचन सुना, तब उनके शब्द थे, 'पश्चिम की संस्कृति भड़का है । भड़का क्षणिक होता है, जब कि प्रकाश लंबे समय तक चलता है अहमदाबाद के साबरमती विस्तारमें संयुक्त परिवार में रहते हुए उत्तमभाईने इ.स. १९९३ में अपने पिताजी एवं तीनों भाईओं के साथ चर्चा की । भानजे के साथ घरमें रहते हुए ११ बालकों को स्कूलका शिक्षण बंद कराना चाहिए ऐसा अभिप्राय व्यक्त किया । वर्तमान शिक्षा के गैरफायदे और ऋषिओं के युग की शिक्षाप्रणाली के लाभ प्रस्तुत किये । आखिर सभीने उत्तमभाई की योजना का स्वीकार किया था । घर में सब से बड़े भाई रमणभाई की बेटी पूनम १२वीं कक्षा में, पुत्र चेतन १०वीं कक्षामें, अक्षय ७वीं कक्षा में और धर्मेश ५वीं कक्षा में पढता था। दूसरे नंबर के उत्तमभाई की बेटी काजल १२वीं कक्षा में, आरती १०वीं कक्षामें, अंकिता ९वीं कक्षामें, और अखिल ७वीं कक्षामें,
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy