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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग
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जिनालयों में सामूहिक चैत्यवंदन किया जाता था ।
गिरनारजी जैसे महातीर्थ की तलहटीमें अन्य जैन धर्मशाला की आवश्यकता को लक्ष में रखते हुए वहाँ ली गयी जमीं के उपर ५. गणिवर्य श्रीने माँगलिक सुनाकर वासक्षेप किया था । वहाँ जिनालय उपाश्रय धर्मशाला भोजनशाला इत्यादिके निर्माणकार्य का प्रारंभ हो चुका है । अल्प समय में यह कार्य परिपूर्ण होने पर अक्सर ९९ यात्रा आदि आयोजन होने से तीर्थ की महिमा बढेगी इसमें संदेह नहीं ।
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स्कूल का शिक्षण वर्ज्य किया, घर को ही शाला बनाया, अहमदाबाद का जैन परिवार भूतकाल .को वर्तमानमें ला रहा है ।
स्नातक और अनुस्नातक होने के बाद भी नौकरी प्राप्त करने के लिए आधी जिंदगी व्यतीत हो जाती है । ऐसी परिस्थिति सामने आने पर कई लोग कहते हैं कि इस शिक्षण से क्या लाभ कि जो दो टाईम रोटी भी नहीं दे सके ? ऐसे सभी प्रश्नों के प्रत्युत्तर अहमदाबाद के एक जैन परिवार के पास हैं । इस परिवार के ११ बालकोंने स्कूल में जाना छोड़ दिया है और घर में ही संस्कृत, प्राकृत और वैदिक गणित की पढाई शुरू कर दी है । अब उनके मन में तथाकथित आधुनिक शिक्षण और डिग्रीयाँ महत्त्वकी नहीं हैं । जीवन जीने की कला सिखाये वही सच्चा शिक्षण है।
इस प्रयोग का अमल तो पिछले ३ साल से हुआ है किन्तु सचमुच तो इसका विचार २२ साल पुराना है । मूलतः राजस्थान के निवासी किन्तु कई वर्षों से गुजरातमें सुरत जिले के किम गाँव में रहते हुए जवानमलजी शाह को चार पुत्र हैं । जवानमलजी का किममें धान्य का व्यवसाय अच्छा चलता था । उनका घर समृद्धिशाली था ।
ई. स. १९७० में जवानमलजी के द्वितीय पुत्र उत्तमभाई अस.अस.सी. में ७२ प्रतिशत गुणांक प्राप्त हुए । सारे किम में प्रथम क्रमाँकमें वे उत्तीर्ण हुए थे । उनकी प्रगति को देखकर गाँव के कुछ
बहुरत्ना वसुंधरा - २-23