________________
बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २
३४९ करते हैं । (३४) प्रतिदिन एकाशन तप चालु है । योगोद्वहन में भी आयंबिल खाते के आहार का त्याग । (३५) दीक्षा के दिन उनके निमित्त से लाये गये कम्बल कपड़ा आदि गुरु आज्ञा लेकर नहीं बहोरे । (३६) दीक्षा के दूसरे दिन वसुधा बंगले में बहोरने के लिए जाने का प्रसंग आया । वहाँ पर भी दोष की संभावनावाली अनेक चीजें नहीं बहोरी । (३७) प्राचीन विधि के अनुसार श्री दशवैकालिक सूत्र के ४ अध्ययन संपूर्ण कंठस्थ करने के बाद ही बड़ी दीक्षा अंगीकार की । (३८) बडी दीक्षा के अवसर पर भी सांसारिक परिवारजनों के अति आग्रह के भी वशीभूत हुए बिना पात्र आदि नहीं बहोरे । (३९) अधिकांश स्वाध्याय हस्तलिखित प्रत के आधार से ही करते हैं (४०) दीक्षा ग्रहण के बाद ज्ञान-ध्यान और तप-जप में अदभूत लीनता के प्रभाव से ओघनियुक्ति, आवश्यक नियुक्ति, योग बिन्दु, तिलक मंजरी, मुक्तावलि इत्यादि ग्रंथों का अध्ययन अल्प समय में ही कर लिया । प्रसंगोपात 'श्राद्धविधि' ग्रंथ के आधार से उनके द्वारा प्रदत्त वाचना का लाभ सैंकडों श्रावक लेते रहते हैं। (४१) प्रतिक्रमण आदि क्रियाओं की अप्रमत्तभाव से आराधना । (४२) ज्ञान-ध्यान की साधना के साथ साथ वंदन हेतु आते हुए जिज्ञासुओं के साथ मर्यादित वार्तालाप पूर्वक उनको भी धर्मसन्मुख बनाने की हितबुद्धि ।
इत्याति अनेकविध विशेषताओं से दिदीप्यमान व्यक्तित्व का ही एक नाम याने मुनि श्री हितरुचिविजयजी महाराज ।
पिछले ४ वर्षों में अलग अलग समुदायों के पूज्यों की निश्रामें कुछ छ'री पालक यात्रासंघ ऐसे निक ले कि जिन में आधुनिकता की बजाय उपरोक्त प्रकारकी कुछ प्राचीन परंपराओं का अनुसरण किया गया था, इसके पीछे भी साक्षात् या परंपरया उपरोक्त मुनिवर की प्रेरणा या मार्गदर्शन था ऐसा कहने में अतिशयोक्ति नहीं होगी।
इन संघों में विजली और माइक का उपयोग नहीं किया गया था। पेट्रोल या डिझल से चलते हुए एक भी वाहन का उपयोग नहीं किया गया था । यात्रियों का सामान, तंबू इत्यादि लेने के लिए बैलगाडियाँ,