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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ उंटगाडियाँ इत्यादि का उपयोग किया गया था । हरेक तंबूओं में रातको मसाल, दिवेल के दीपक और कहीं पर पेट्रोमेक्स कीव्यवस्था रखी गयी थी । मलोत्सर्ग के लिए आधुनिक संडाश की बजाय मिट्टी के बर्तनों का उपयोग किया गया था। रसोई और पानी गर्म करने के लिए गेस इत्यादि की बजाय लकडीओं का उपयोग किया गया था । लकडीओं की प्रमार्जना के लिए खास आदमी नियुक्त किये गये थे । सूर्योदय होने के बाद ही रसोडा चालु किया जाता था । इत्यादि अनेक विशेषताओं से युक्त निम्नोक्त सघ निकाले गये थे ।
(१) सागर समुदाय के पूज्यों की निश्रामें निकला हुआ पालिताना से गिरनारजी महातीर्थ का संघ (२) गच्छाधिपति प. पू. आ. भ. श्री विजय महोदयसूरीश्वरजी म.सा. की निश्रा में निकला हुआ पाटण से पालिताना का छ'री' पालक संघ (३) युवक जागृतिप्रेरक प. पू. आ. भ. श्री विजयगुणरत्नसूरीश्वरजी म.सा. की निश्रामें निकला हुआ नारलाई से शंखेश्वरजी इत्यादि का संघ (४) गच्छाधिपति प.पू.आ.भ. श्री विजय अरिहंतसिद्धसूरीश्वरजी म.सा. एवं प.पू.आ.भ.श्री विजयहेमप्रभ सूरीश्वरजी म.सा. की निश्रामें निकले हुओ कलकत्ता से समेतशिखरजी संघ.. इत्यादि ।
मुनिराज श्री हितरुचिविजयजी के मार्गदर्शन के मुताबिक प्राचीन परंपरानुसारी ऐसे शासन के कार्यों को करने के लिए कुछ उत्साही युवक सदा तैयार रहते हैं । किसी भी समुदाय के पूज्यों की निश्रामें ऐसे कार्यों में सेवा देने के लिए वे तैयार हैं ।
____(४) उपरोक्त संघों के अलावा कुछ साल पूर्व में धर्मचक्र तप प्रभावक प. पू. गणिवर्य श्री जगवल्लभविजयजी म.सा. (हाल आचार्य म.सा.) की निश्रामें पूना (महाराष्ट्र) से पालिताना का छ'री' पालक संघ निकला था। उस संघमें कुछ मर्यादाएँ अत्यंत अनुमोदनीय एवं अनुकरणीय थी जिसका संक्षिप्त सार निम्नोक्त प्रकार से है ।
रसोडा विभाग में रसोई करने के लिए या धान्य और बर्तन की सफाई के लिए एक भी महिला को नियुक्त नहीं की गयी थी । पुरुष रसोईये ही सभी कार्य सम्हालते थे ताकि एम. सी. का अपालन या