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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग आयुर्वेदिक औषधिओं का उपयोग करते थे । (१८) बाथरूम की बजाय खुल्ली जगह में स्नान करते थे (१९) फर्निचर के लिए कारखानेमें बनते हुए सनमाइका, फोरमाइका, प्लायवुड इत्यादिका उपयोग न करते हुए साग इत्यादिका प्राकृतिक लकडे का उपयोग करने के वे पक्षपाती थे और अपने घरमें भी उसका अमल किया था । ( २० ) डोरबेल की जगह दोरी युक्त घंटी रखी थी । (२१) गृहमंदिर में लाइट का फिटींग भी नहीं कराया था । (२३) दीक्षा के आमंत्रण पत्र खादी के कागज पर हाथसे लिखवाये थे (२३) दीक्षा की विशिष्ट आमंत्रण पत्रिका खादी के कपडे पर हेन्डप्रिन्ट से बनवायी थी उसमें रासायणिक रंगों की बजाय प्राकृतिक रंगों का उपयोग करवाया था । (२८) वरघोडा एवं दीक्षा के बेनर भी हाथ से लिखवाये थे । (२५) वर्षीदान के ५ विशिष्ट अति भव्य वरघोडों में पेट्रोल डीझल के वाहनों एवं बेन्ड का उपयोग नहीं करवाया था । (२६) दीक्षा के किसी भी प्रसंग में बिजली की रोशनी नहीं करवायी थी । मुंबई एवं अहमदाबाद के प्रत्येक जिनालय में दीपक की रोशनी करवायी थी । (२७) वरघोडा या दीक्षा के प्रसंगमें विडियो मूवी तो क्या मगर फोटोग्राफर भी उनकी ओरसे नहीं बुलाया गया था । (२८) वायणा के प्रसंग में स्मृति के लिए तस्वीर के बदले में कंकु - केसर से हाथ पैर के चिह्न स्थापित किये थे । (२९) उनके पात्र - तरपणी भी देशी पद्धति से रंगे गये थे । (३०) उनका रजोहरण, कम्बल, आसन, संथारा इत्यादि उपकरण देशी ऊन से बनाये गये थे । (३१) साधु-साध्वीजी भगवंतों को बहोराने के लिए विपुल प्रमाणमें हाथ बनावट की खादी के कपड़े का उपयोग किया गया था । (३२) वरघोडा एवं दीक्षा के दिन में कर्णावती ( अहमदाबाद) और बाहरगाँव के करीब डेढ दो लाख साधर्मिक भाई बहनों को बुफे पद्धति की बजाय बैठकर साधर्मिक भक्ति का अपूर्व आदर्श खड़ा किया था ।
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इन सभी बातों से उनके हृदय में रहा हुआ यंत्रवाद की हिंसा के प्रति अरुचिभाव एवं अहिंसक प्राचीन परंपरा के प्रति प्रेम अभिव्यक्त होता है ।
दीक्षा के बाद भी (३३) प्रायः निर्दोष गोचरी पानी का ही उपयोग