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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २
३४७ व्याख्यान वाचस्पति, प. पू. आ. भ. श्रीमद् विजयरामचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के वरद हस्त से संयम अंगीकार किया है और गुरु द्वारा प्रदत्त मुनि श्री हितचिविजयजी ऐसा यथार्थ नाम धारण किया है ।
उनके जीवन को एवं उस ऐतिहासिक दीक्षा प्रसंग के बारेमें अच्छी तरह से जानने के लिए तो उस दीक्षा के बाद अल्प समयमें प्रकाशित 'कल्याण' मासिक का विशेषांक 'अतुलम्' अचुक पढना जाहिए। यहाँ तो केवल अति संक्षेप में उस विशेषांक के आधार से उनके जीवन की कुछ विशेषताएँ अनुमोदन एवं अनुकरण हेतु प्रस्तुत की जा रही है।
(१) वे टूथपेस्ट टूथब्रस के बदले में आयुर्वैदिक दंतमंजन या दातून का उपयोग करते थे । (२) हेन्डलूम की खादी के कपड़े ही पहनते थे । (३) केमिकल्स रहित गुड़-चीनी का उपयोग करते थे (४) मील के पोलिस किए हुए चावक की जगह हाथों से छेडे हुए चावल का उपयोग करते थे। (५) रीफाईन्ड तेल की जगह बेलघाणी से निकाला हआ तिल का तेल ही वापरते थे । (६) इलेक्ट्रीक घंटी की बजाय हाथघंटी से ही धान्य पीसाते थे। (७) फर्टिलाईझर, पेस्टीसाईक्स बिना के देशी खाद से उत्पन्न धान्य का उपयोग करते थे (८) ताजा दूध और शुद्ध घी का उपयोग करते थे । (९) नल के पानी की बजाय कुएँ के पानी का उपयोग करते थे । (१०) स्टील की बजाय कांसे की थाली कटोरी में भोजन करते थे। (११) गैस स्टव की बजाय चूले द्वारा बनी हुई रसोई का भोजन करते थे । (१२) लगभग पिछले ७ साल से एकाशन करते थे । उस में भी बचपन से सभी फल, एवं मिठाई (सुखडी, सीरा एवं पूरणपूरी के सिवाय) का त्याग है । (१३) टी. वी., विडियो, रेडियो, टेप, फिझ, एरकंडीशन, वोशिंग मशीन, गीझर, मिश्चर, ज्यूसर, ग्राईन्डर इत्यादि आधुनिक पापजनक यांत्रिक साधनों का उपयोग कभी नहीं करते थे । (१४) प्राकृतिक रूपसे मरे हुए पशुओं के चर्म से बने हुए जूते पहनते थे। (१५) फोटु खींचवाने का निषेध करते थे । (१६) गृहस्थ जीवनमें भी अति विशाल सभा के सिवाय माइक का उपयोग नहीं करते थे । (१७) एलोपथी या होमियोपथी दवा के बजाय अल्प हिंसा से बनती