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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग
राजा ऋषभ द्वारा प्रवर्तित आर्यसंस्कृति की परंपरा १४९ एवं मर्यादानुसार संपत्र हुए कुछ शासन प्रभावक सत्कार्यों की अनुमोदनीय झांकी
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तथाकथित लोकशाही के इस जमाने में आज जब आधुनिक शिक्षण, विज्ञानवाद और यंत्रवाद के परिणाम से चारों ओर नास्तिता, भौतिकता और हिंसा का साम्राज्य फैल गया है... गरीबी, बेकारी और महँगाई' के विषचक्रमें आर्य महाप्रजा अधिक अधिकतर फँसती जा रही है तब इन सभी के मूलकारण के रूपमें प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ (ऋषभदेव) भगवानने अपनी राज्यावस्थामें प्रवर्ताए हुए उत्तम व्यवहारों से बिलकुल विपरीत ऐसी आधुनिक जीवन पद्धति और उसके प्रवर्तक अंग्रेज लोग हैं ।
इस बातको दीर्घदृष्टा, आर्यसंस्कृति प्रेमी, सूक्ष्मतत्त्वचिंतक श्राद्धर स्व. पंडितवर्य श्रीप्रभुदासभाई बेचरदास पारेख ने अपनी प्रचंड मेधा, निर्मल बुद्धि और दीर्घदृष्टि से जानकर उन उन भयस्थानों से प्रजा एवं धर्मगुरु आदि को अवगत कराने के लिए उन्होंने करीब डेढ लाख पन्ने जितना साहित्य लिखा है । जिनमें से कुछ साहित्य 'हित मित पथ्यं सत्यं' मासिकों की फाइलें एवं श्री पंच प्रतिक्रमण सूत्र, श्रीतत्त्वार्थ सूत्र आदि का विवेचन इत्यादि रूपमें प्रसिद्ध हुआ है ।
इस साहित्य द्वारा अनेक लोगों को नयी जीवन दृष्टि संप्राप्त हुई है। और अनेक लोगोंने यथाशक्ति तदनुसार जीवन जीने के लिए पुरुषार्थ भी किया है । लेकिनि वर्तमानकालमें इस साहियका सब से अधिक विधायक असर यदि किसीके जीवनमें हुआ है तो वे हैं एक कोट्याधिपति, गर्भश्रीमंत, हीरों के व्यापारी वडगाँव ( पालनपुर के पास) के सुश्रावक श्री दलपतभाई और रत्नकुक्षि सुश्राविका श्री शांताबहन के घर में आज से ३७ साल पहले जन्मे हुए अतुलकुमार कि जिन्होंने आजसे ८ साल पहले अहमदावाद के सरदार स्टेडियममें लाख से अधिक जनसंख्या की उपस्थितिमें सुविशालगच्छाधिपति,