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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ मेजिस्ट्रेट - अब मैं पूछता हूँ सो बताओ, उससे तुम्हारे सच झूठ
की जाँच हो जायेगी। बताओ वहाँ (सिद्धाचलजी में) कितने मन्दिर है ? वे किस प्रकार से घिरे हुए है और
मन्दिरों में पहुँचने के कितने दरवाजे हैं ? सिद्ध - बहुत मंदिर हैं । वे एक चार-दीवारी से घिरे हुए
हैं, जिसके तीन दरवाजे हैं ।। मेजिस्ट्रेट - अच्छा, तुम किस दरवाजे से जाते थे ? सिद्ध - पीछे के दरवाजे से ।
मेजिस्ट्रेट की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं था । वह बालक को गोद में उठाकर मेरे कमरे में आया और अपने परिवार में इस प्रकार का अमूल्य रत्न प्राप्त करने के लिये मुझे हार्दिक बधाई दी।
स्थानकवासी साध्वी और बालक
कुछ स्थानकवासी साध्वियाँ बालक से मिलने आई । उनमें से एक ने बालक की जाँच की । साध्वी - तुम कहते हो कि तुम आदीश्वर भगवान की पूजा करते
थे। तुम यह पूजा कैसे करते थे ? सिद्ध - मैं केसर और फूलों से पूजा करता था । साध्वी - तुम्हें ये कैसे मिलते थे ? सिद्ध - (केसर की उपरोक्त कथा दोहराने के बाद) सिद्धवड़ के
पास वाले बगीचे से मैं फूल लाता था । साध्वी - क्या केसर और फूलों से मूर्ति की पूजा करना पाप
नहीं था? सिद्ध - अगर पाप होता तो मैं तोते की योनि से मानव की
__योनि में कैसे जन्म पा सकता था ?