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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ न्यायाधीश तथा बालक
मोरबी रेल्वे हल्के के मेजिस्ट्रेट बालक सिद्धराज से मिलने आये और उन्होंने विस्तारपूर्वक उसकी जाँच और जिरह की । यह जिरह विशेष उल्लेखनीय इसलिए है कि उससे यह साबित होता है कि बालक को अपने पूर्वजन्म की याद कितनी स्पष्ट है । इस जन्म में सिद्धाचलजी की यात्रा किये बिना ही वह अपने पूर्वजन्म 'तोते के जीवन' की घटनाओं को बता सकता था ।
मेजिस्ट्रेट - तुम पूर्व जन्म में क्या थे ? सिद्ध - मैं तोता था । मेजिस्ट्रेट - तुम कहाँ रहते थे ? सिद्ध - 'सिद्धवड' में । मेजिस्ट्रेट - यह क्या है और कहाँ है ? सिद्ध - यह एक पवित्र वृक्ष है जो ६ कोस की परिक्रमा
में पहाड के दूसरी तरफ है । मेजिस्ट्रेट - तुम वहाँ क्या करते थे ? सिद्ध - मैं आदीश्वर भगवान की पूजा करता था । मेजिस्ट्रेट - तुम किससे पूजा करते थे ? सिद्ध - केसर से । मेजिस्ट्रेट - तुम्हें केसर कहाँ से मिलती थी ? सिद्ध - मरुदेवी माता के छोटे हाथी पर रखे हुए
प्यालों से। मेजिस्ट्रेट - केसर की प्याली तुम किस तरह ले जाते थे ? सिद्ध - अपने पंजों से पकड़कर । मेजिस्ट्रेट - अपनी चोंच से क्यों नहीं ? सिद्ध - उससे तो कैसर अपवित्र हो जाती ।