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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग २
इस जवाब को सुनकर साध्वी एकदम चुप हो गई । सभी साध्वियाँ बालक की सराहना करती हुई वहाँ से चली गईं । चमेली के फूल की पहचान
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बीमारी से मुक्त होने के बाद विशेष पूजा के लिए पालीताना से मैने गुलाब और चमेली के फूल मँगवाये थे । पार्सल खोलने पर बालक ने चमेली का एक फूल उठा लिया और बोला "मैं आदीश्वर भगवान् की ऐसे फूलों से पूजा करता था ।
सिद्धाचल की पहचान
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सन् १९१२ के जनवरी मास में रात की गाड़ी से वढवाण से पालीताना के लिए रवाना हुए। प्रातःकाल हम सोनगढ पहुँचे । चारों और की पहाडियों को देखते ही बालक ने उत्साह से कहा कि " अब हम उस पवित्र पहाड़ के आसपास है ।" सीहोर स्टेशन पर पालीताना के लिए गाडी बदलने के समय बालक प्लेटफोर्म पर खड़ा हो गया और उस पवित्र पर्वत की दिशा में मुड़कर अत्यन्त आनन्द के साथ उसकी वंदना की । फिर मेरी तरफ मुड़कर वह अत्यन्त आनंदपूर्वक मन से बोला "देखिये, देखिये काका साहब, वह सामने की तरफ का उँचा काला पहाड़ सिद्धाचल है । जल्दी करिए, हम तुरंत पहाड पर चलें ।" पहाड़ के नीचे
बाबु माधोलाल की धर्मशाला में ठरहने का इन्तजाम करके हम लोग शाम को पहाड़ों के नीचे पहुँचे । जब हम लोगों ने रिवाज के मुताबिक वंदन किया तो बालक ने पहले स्तुति की और फिर जमीन पर लेटकर पूरा दण्डवत् किया । उसने इस पवित्र भूमि का बहुत प्रेम से आलिंगन किया। लगता था जैसे बालक मुग्ध हो गया हो । वह तलहटी के एक सिरे से दूसरे सिरे तक लगभग १५ बार लोटा होगा । उसने उसी समय पहाड़ पर जाने के लिए अत्यंन्त उत्साहपूर्वक हम लोगों से कहा । पर बाद में मेरे समझाने पर दूसरे दिन प्रातः काल पहाड़ी पर जाने के लिए राजी हो गया ।