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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २
रतिलालभाई धोती पहनते थे, इसलिए डोक्टरों को लगा कि ये अंग्रेजी नहीं जानते होंगे । मगर रतिलालभाई अंग्रेजी जानते थे, वे डोक्टरों की बात समझ गये और ओपरेशन के समय में अनेस्थिसिया लेने के लिए निषेध कर दिया । डोक्टरों ने आग्रह किया तब रतिलालभाई ने कह दिया कि, 'मैं पीड़ा के निमित्त से एक शब्द भी नहीं बोलुंगा, कितनी भी पीड़ा होगी उसे चूपचाप सहन करूँगा।
आखिर अनेस्थिसिया के बिना ही ओपरेशन हुआ । दूसरे दिन रतिलालभाई ने नर्स को कुछ रूपयों की बक्षिस देकर पूजा के लिए इजाजत माँगी, मगर नर्सने इजाजत नहीं दी तब रतिलालभाई पीछे की बारी से नीचे उतरने की कोशिश करने लगे । आखिर नर्सने गबराकर किसीको नहीं कहने की शर्त पर पूजा के लिए अनुमति दी । इस प्रकार से उन्होंने ओपरेशन के दूसरे ही दिन भी जिनपूजा की।
डोक्टर ने कहा 'क्यों रतिलालभाई ! आपने अगर आज पूजा की होती तो कितनी तकलीफ हो जाती । धर्म का ऐसा पागलपन नहीं रखना चाहिए ।
- रतिलालभाईने निर्भयता और निखालसता से प्रत्युत्तर देते हुए कहा कि 'डोक्टर ! आज सुबह भी मैंने प्रभुपूजा की है । मेरे प्रभुजी की पूजा से ही मैं बच गया हूँ। ओपरेशन के बाद आपने की हुई सिलाई भी नहीं टूटी है । प्रभुकृपा से ही सब अच्छा होता है । धर्म करने के लिए कभी भी किसी को मनाई नहीं करनी चाहिए'। रतिलालभाई की ऐसी अद्भुत धर्मदृढता देखकर डोक्टर का शिर भी अहोभाव से झुक गया।
(६) एक बार रतिलालभाई की सुपुत्री की शादी का प्रसंग था। रास्ते में कुछ कारण से समय ज्यादा लग गया इसलिए बारात जब रतिलालभाई के घर पर आयी तब सूर्यास्त होने में बहुत अल्प समय बचा था । रतिलालभाईने अपने समधी आदि को स्पष्ट कह दिया कि 'आप जानते हैं कि मैं रातको न स्वयं खाता हूँ औन न किसी को भी रातको खिलाता हूँ । चाय तैयार करवा दी है। आप सभी चाय नास्ता जल्दी कर लें । रात्रिभोजन का पाप मैं किसीको नहीं करने दूंगा । रिश्तेदारों बहरत्ना वसुंधरा - २-19