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- बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ फिदा हो जाते थे । तब रतिलालभाई अपनी जेबमें से ५०० रूपये उनको देकर निर्दोष आजीविका के लिए प्रेरणा देते थे, फलतः मच्छीमार भी हमेशा के लिए मच्छीमारी का त्याग कर देते थे । ऐसे तो करीब १० से अधिक प्रसंग उनके जीवन में हुए हैं।
(३) जिनमंदिर की देखभाल करने में भी रतिलालभाई इतने ही जाग्रत रहते थे । कभी रात को ३-४ बजे जिनालय में छिपकर बैठ जाते थे और पूजारी पूजा के कपड़े पहनने से पहले स्नान करता है या नहीं उसका भी वे खयाल करते थे।
(४) जिनमंदिर का कोष खोलने के समय में कभी भी एक दो जने नहीं किन्तु ४ - ५ व्यक्ति साथमें बैठकर ही कोष को खोलते थे
और तुरंत राशि की गिनती करते थे । बीच में कभी अपने को लघुशंका के लिए बाहर जाना पडता था तो वे अकेले न जाते हुए बैठे हुए व्यक्तियों में से किसी भी एक व्यक्तिको साथ में लेकर ही वे बाहर जाते थे, इसलिए अन्य कार्यकर्ताओं से भी वे इसी पद्धति का अनुसरण सहज रूपसे करा सकते थे।
सचमुच जिनशासन की यह महिमा है कि कलियुग में भी ऐसे जीवदयाप्रेमी, प्रामाणिक सुश्रावक होते रहते हैं । वर्तमानकालीन संघों के अग्रणी भी इसमें से कुछ प्रेरणा ग्रहण करेंगे यही शुभाभिलाषा ।
(५) रतिलालभाई नियमित रूपसे हररोज जिनपूजा करते थे । एकबार उनको मस्तक का ओपरेशन करवाने का प्रसंग आया । डोक्टरने कहा कि, 'आपको संपूर्णतया आराम करना होगा' । रतिलालभाईने जवाब दिया कि, 'आराम करूँगा मगर केवल प्रभुपूजा के लिए मुझे इजाजत मिलनी चाहिए। डोक्टरने कहा, 'हलनचलन से टाँके टूट जायेंगे इसलिए इजाजत नहीं मिल सकेगी'। रतिलालभाईने कहा, 'प्रभुपूजा के बिना मुझे चैन नहीं पडता, इसलिए कुछ भी हो मगर पूजा के लिए मुझे इजाजत देनी ही होगी ।'
डोक्टर लोग आपस में अंग्रेजी में बातचीत करने लगे कि, 'ये जिद्दी लगते हैं, ओर्थोडोक्स हैं, मगर हम उनको एनेस्थिसिया दे देंगे ताकि वे बेहोश ही रहेंगे।