________________
बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २
२८७ दुश्मन हैं, फिर भी तुमने हमको मृत्यु से क्यों बचाया है ?' तब . रतिलालभाई ने प्रत्युत्तर दिया कि, 'साहब ! आप भी मेरे मित्र हैं और घोड़े भी मेरे मित्र हैं । आप यदि मुझ पर प्रसन्न हुए हों तो घोड़ों को सूट नहीं करने का मुझे वचन दीजिए ।' और सुप्रसन्न होकर अंग्रेज अमलदारों ने घोड़ों को सूट नहीं करने का वचन दिया और एक सुवर्णचंद्रक भी रतिलालभाई को बहुमान के साथ अर्पण किया ।
(२) १० बार मछलियों को बचाया ।
कुछ मच्छीमार लोग वढवाण के तालाब में से रात के समय में बहुत मछलियाँ पकड़ने की कोशिष करते थे। दिन में महाजन लोगों से डरकर वे रात को ही यह कार्य करते थे । इस बात की खबर रतिलालभाई को मिलने पर वे रातको २-३ बजे अकेले तालाब के पास पहुँच जाते थे। दूर से मच्छीमारों को रतिलालभाई के आगमन की खबर मिलते ही वे क्रोधित होकर उनको धमकी देते थे कि, 'वापिस लौट जाओ, नहीं तो बंदूक की एक ही गोली से आप को खत्म कर देंगे ' तो भी जरा भी डरे बिना रतिलालभाई मच्छीमारों के पास पहुँच जाते थे । कई बार मच्छीमार लोग बंदूक की नोंक रतिलालभाई के सीने पर रखकर कहते थे कि, 'अगर जिन्दा रहना है तो अभी भी वापिस लौट जाओ और हमें हमारा काम करने दो' । तब रतिलालभाई अपनी जेबमें से पत्र निकालकर टोर्च के प्रकाश में मच्छीमारों को दिखाते थे, जिसमें लिखा था कि 'मैंने स्वयं कुछ तकलीफों से ऊबकर खुदकुशी कर ली है, मुझे किसीने भी मारा नहीं है, इसलिए इस मृत्यु के कारण किसी को भी सजा नहीं होनी चाहिए ।'
पत्थर दिल के मच्छीमार भी दैवी दिल वाले इस आदमी को देखकर पिघल जाते थे । बाद में रतिलालभाई उनको कहते थे कि 'अब भले आपको बंदूक चलानी हो तो मेरे उपर चलाओ मगर मुझे इतना तो वचन दो कि मुझे मारने के बाद आप या आप के संतान एक भी मछली को नहीं मारोगे ।'
___ मछलियों की खातिर अपनी जान को प्राणांत जोखिम में डालने वाले इस इन्सान की करुणा का भाव देखकर मच्छीमार भी उनके उपर