________________
२९०
बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ ने रतिलालभाई को समझाते हुए कहा कि 'रतिलालभाई ! बेटी की शादी के प्रसंग में ऐसा व्यवहार करने से दुषपरिणाम आ सकता है । मगर रतिलालभाईने बेटी की शादी के प्रसंग में भी किसी को रात्रिभोजन नहीं करने दिया । कैसी अद्भुत धर्मदृढता !
(७) रतिलालभाई इंदोर के सेठ हुकमीचंदजी का माल लाकर व्यापार करते थे । हुकमीचंदजी करोड़पति थे । एक बार उनको किसी प्रयोजनवशात् वढवाण में आने का प्रसंग आया । रतिलालभाईने उनको अपने घर पर ही ठहरने की विज्ञप्ति की थी और साथ में यह भी सूचित किया था कि 'शेठजी! सूर्यास्त के बाद मैं किसी को पानी भी नहीं पीलाता हूँ, इसलिए आप दिन में ही समयसर पधारने की कृपा करें ।
___मगर हवाई जहाज को किसी कारणवशात् देर हो जाने से हुकमीचंदजी सूर्यास्त के बाद रतिलालभाई के घर पहुँचे । रतिलालभाई ने उनको भोजन करने के लिए निमंत्रण नहीं दिया । रतिलालभाई के भाई आदिने रतिलालभाई को कहा कि, 'अगर सेठजी को भोजन नहीं करवायेंगे तो वे नाराज हो जायेंगे और माल नहीं देंगे, इसलिए इस एक बार आप उन्हें रातको भी भोजन करा दो' । मगर रतिलालभाई नहीं माने । उन्होंने कहाँ, 'व्यवसाय भले बंद करना पड़े मगर मैं रात्रिभोजन तो नहीं ही करवाऊँगा।
___ हुकमीचंदजीने कहा, 'रतिलालभाई ! लविंग तो दीजिए । (उनको लविंग खाने की आदत थी ।) रतिलालभाईने कहा, 'सेठजी ! क्षमा कीजिएगा, रातको मैं कुछ भी खाने की वस्तु नहीं दे सकता, इसमें मेरी अंतरात्मा मनाई कर रही है ।।
. रातको जाहिर सभामें सभी बहुत डरते थे कि जरूर सेठजी बहुत गुस्से में आकर टीका करेंगे, लेकिन हुकमीचंदजीने तो रतिलालभाई को जाहिर सभा में अपने पास बुलाकर बहुत बहुत धन्यवाद दिये ।
प्रिय पाठक ! देखा न, धर्मदृढता का कैसा सुखद परिणाम आया इसलिए आप सभी भी दृढ संकल्प कर के रात्रिभोजन के महापाप के तिलांजलि देकर रतिलालभाई के जीवन की सच्ची अनुमोदना करें ।