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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ कहावत है कि 'जैसा बाप वैसा बेट' । मगर कवयन्नकुमार को तो गर्भावस्था से ही ऐसे उत्तम माता-पिता के संस्कार मिले होने से 'बाप से बेय बढकर' इस उक्ति को वह सार्थक करेगा, वैसे लक्षण बचपन से ही उसके जीवन में दृष्टिगोचर हो रहे हैं ।
माता-पिता की तरह कयवनकुमार भी करोड़ नवकार की आराधना में बचपन से ही जुड़ गया है । उस के हाथ में जब देखो तब नवकार महामंत्र की गणना चालु ही होती है।
नवकार महामंत्र के प्रति उसको ऐसी सुदृढ आस्था है कि किसी भी कार्य में अगर विघ्न या विलंब होता हो तो वह आदिनाथ भगवान को प्रार्थना करके नवकार महामंत्र का स्मरण करता है और तुरंत कार्यसिद्धि हुए बिना रहती नहीं।
कयवन कुमार हररोज अपने माँ बाप का चरण स्पर्श करके उनके आशीर्वाद लेता है। करीब ५ साल की उम्रसे वह छुट्टियों के दिनों में अपने पिताश्री के साथ पूजनों में बैठता था, फलतः ११ साल की उम्र में तो वह श्री सिद्धचक्र महापूजन और श्री बृहत् शांतिस्नात्र जैसे पूजन पुस्तक या प्रत के बिना अत्यंत शुद्ध उच्चार पूर्वक पढाने लगा है। कई बार एक साथ २-३ स्थानों में पूजन पढाने के लिए निमंत्रण मिलते हैं तब कयवनकुमार अकेला भी (पिताश्री के बिना) अपनी पार्टी के साथ जाकर बहुत अच्छी तरह से पूजन पढाता है । उसने पढाये हुए पूजनकी विडियो केसेट विदेश में भी अत्यंत लोकप्रिय हुई है।
पूजन के दौरान अभिषेक के समय में प्रभुजी के जन्म कल्याणक की उजवणी के प्रसंग में हरिणेगमेषी देव का कर्तव्य वह अत्यंत अद्भुत रीत से करके दिखलाता है। .. वह हररोज प्रात:काल में २ - २॥ घंटे तक जिनमंदिर में स्वद्रव्य से अष्टप्रकारी जिनपूजा करता है । करीब ३० जितने स्तवन और दो प्रतिक्रमण के सूत्र कंठस्थ हैं । महिने में करीब १५ दिन अपने मातापिता के साथ प्रतिक्रमण भी करता है । जमीकंद तो कभी भी उस के पेट में गया ही नहीं।
सभी पापों की माँ "सिने-मा' की तो उसने परछाई भी नहीं ली।