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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २
२८५ कयवनकुमार बड़ा होकर जिनशासन की जबरदस्त प्रभावना करेगा उसमें संदेह नहीं ।
उसका चचेरा भाई जयकुमार आज ९ साल की उम्रका है और वह भी अक्सर पूजन पढाने की शिक्षा ले रहा है। दोनों बच्चे जब धोती और खेस पहनकर पूजन में बैठे हुए होते हैं तब मानो लव-कुश की जोड़ी हो वैसे शोभते हैं।
सभी माँ बाप इस दृष्टांत में से प्रेरणा लेकर अपनी संतानों में ऐसे सुसंस्कारों का सिंचन करने के लिए कटिबद्ध बनें और उसके लिए अपना जीवन भी आराधना से मघमघायमान बनायें यही शुभाभिलाषा ।
पता : कयवनकुमार नरेन्द्रभाई रामजी नंदु विभासदन, सहकार रोड, जोगेश्वरी (वेस्ट), मुंबई ४००१०२,. फोन : ६२०८५२४ (घर) / ६२८५०१४ (दुकान)
अपनी जान को जोखिम में डालकर घोड़े एवं मछलियों को बचानेवाले सुश्रावक श्री
रतिलालभाई जीवण अवजी .. [दि. ६-६-९५ के दिन हम वढवाण (जि. सुरेनद्रनगर - गुजरात) में श्रीरामसंगभाई दरबार को उनकी अनुमोदनीय आराधना के विषय में जानकारी प्राप्त करने हेतु मिले थे, तब उन्होंने अपनी बात तो संक्षेप में ही पूर्ण की, मगर वढवाण के जीवदयाप्रेमी सुश्रावक श्री रतिलालभाई की अत्यंत अनुमोदनीय बातें विस्तारसे कहीं । रतिलालभाई कुछ ही साल पूर्व स्वर्गवासी हुए हैं मगर उनके जीवन प्रसंग अत्यंत प्रेरक होने से यहाँ प्रस्तुत किये जा रहे हैं । रतिलालभाई के सुपुत्र के घर में वढवाण में आज भी गृह जिनालय विद्यमान है, जिसके दर्शनार्थ हम गये थे । मुंबई - माटुंगा में रतिलालभाई के पिताजी के नाम से जीवण अबजी ज्ञानमंदिर (उपाश्रय) सुप्रसिद्ध है । संपादक ]