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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २
२८३ ही होती है । एक क्षण भी वे निरर्थक नहीं गंवाते हैं । स्वयं अप्रमत्तता से करोड़ नवकार की आराधना करते हैं और अनेक आत्माओं को वे करोड़ नवकार जप में जोड़ते रहते हैं ।
वे स्वयं नवकार महामंत्र की आराधना में कैसे जुड़े और नवकार के प्रभाव से जीवन में कैसे कैसे चमत्कारों का अनुभव किया उसका विस्तृत वर्णन प्रस्तुत किताब के संपादक द्वारा संपादित और श्री कस्तूर प्रकाशन ट्रस्ट मुंबई (फोन : ४९३६६६०) के द्वारा प्रकाशित "जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?" (गुजराती-हिन्दी-अंग्रेजी में कुल २३०० प्रतियाँ)में प्रकाशित हुआ है, जो.खास पढने लायक है।
शादी के बाद अल्प समय में ही उन्होंने २ बार एकाशन तप और ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा पूर्वक एक एक लाख नवकार की आराधना पूर्ण की थी। अब तो कई वर्षों से वे हमेशा एकाशन ही करते हैं ।
कहीं भी अंजनशलाका प्रतिष्ठा महापूजन आदि के विधिविधान करवाने के लिए उनको बुलाया जाता है तो वे यातायात की टिकट के सिवाय कुछ भी नहीं लेते हैं । बहुमान में भी तिलक के सिवाय कुछ भी नहीं स्वीकारने की उनकी प्रतिज्ञा है । - ऐसी नि:स्पृहवृत्ति और उत्तम आराधना द्वारा उनके जीवन में ऐसी सूक्ष्म शक्ति का प्रचंड निर्माण हुआ है कि भारतभर में वे जहाँ भी जाते हैं वहाँ उनका प्रत्येक वाक्य आदर के साथ स्वीकृत होता है । हैद्राबाद (चैतन्यपुरी), गाडरवाड़ा, जबलपुर आदि अनेक स्थानों में उनकी प्रेरणा से जिनालयों का निर्माण हुआ है, जिनमें उन्होंने स्वयं भी अच्छा योगदान दिया है।
अपने घर के गृहमंदिर के लिए उन्होंने सुवर्ण का जिनबिम्ब भी उत्कृष्ट जिनभक्ति के परिणामों से बनवाया है । जिनभक्ति और धार्मिक वार्तालाप के लिए उनको विदेशों से भी निमंत्रण मिलते रहते हैं । उनकी धर्मपत्नी सुश्राविका श्री दमयंतीबहन भी नवकार महामंत्र के विशिष्ट आराधक और धर्म के रंग से रंगी हुई हैं ।