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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ विधिपूर्वक चैत्यवंदन करते हुए हमने देखा था । वह बालक श्रीआनंदघनजी कृत चौबीसी का एक स्तवन भावपूर्वक गा रहा था ।
चैत्यवंदन के बाद में उपाश्रय में आकर स्पष्ट उच्चार पूर्वक गुरुवंदन किया। यह बालक पाँच प्रतिक्रमण और ४ प्रकरण सीखने के बाद ३ भाष्य सीख रहा था । उसकी माताने ६ कर्मग्रंथ तक अध्ययन किया था, इसलिए वह बालक अपनी माँ के पास ही भाष्य सीख रहा था । हररोज व्याख्यान श्रवण भी करता था । धन्य है उस बालक को !! धन्य है उसकी माता को ! . जैन नगर मैं प. पू. आ. भ. श्री अशोकसागरसूरिजी म. सा. की निश्रामें ५ से ८ सालकी उन के करीब ७ बालकों ने अट्ठाई तप किया था। .
कृष्णनगरमें ९ साल की उम्र के जिगरकुमार कमलेशभाई शाह ने पर्युषण में सैंकडो लोगों की उपस्थिति में अतिचार सूत्र, बड़ी शांति और अन्य धार्मिक सूत्र बोलकर लोगों को आश्यर्यमुग्ध बना दिया था । श्री संघने उसका बहुमान किया था । वह हररोज जिनपूजा एवं नवकारसी करता है । प्रति माह पाँच पर्वतिथियों में हरी वनस्पति का त्याग करता है।
(८) १० सालकी उम्र से प्रति वर्ष अट्ठाई तप करते हुए कच्छी युवा श्रावक किरणभाई वेरसी गडा (उ. व. ३९):
अहमदाबाद में जैननगर-सौराष्ट्र सोसायटी में रहते हुए सुश्रावक श्री जसवंतभाई लालभाई (उ व. ६८) पिछले २९ साल से हर पर्युषण में अाई तप करते हैं, किन्तु कच्छ चीआसर के (हाल मुंबई-शिवरी)में रहते हुए किरणभाई वेरसी गडा (उ. व. ३९) ने १० सालकी बाल्य वय में अट्ठाई तप का प्रारंभ किया था, तभी से लेकर पिछले २९ साल से प्रत्येक पर्युषण में वे अछाई तप करते हैं।
___ कच्छ केसरी, अचलगच्छाधिपति, प. पू. आ. भ. श्री गुणसागरसूरीश्वरजी म.सा. की पावन निश्रा में वि. सं. २०४० में मुंबई से समेतशिखरजी महातीर्थ का एवं सं. २०४१ में समेतशिखरजी से पालिताना का छ: 'री' पालक विराट पदयात्रा संघ निकला था तब २५ वर्ष