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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २
२६७ रतिलालभाई की भरयुवावस्था और विशिष्ट रूप देखकर पूज्यश्रीने पूछा - 'बराबर सोच समझकर निर्णय किया है न ?' श्रावक ने कहा - 'जी हाँ, ऐसे तो शादी करने की मेरी इच्छा ही नहीं थी, किन्तु कर्म संयोग से शादी करनी पड़ी है । फिर भी पुण्ययोग से पात्र मेरी भावना के अनुसार अनुकूल मिला है, इसलिए व्रत पालन में कोई दिक्कत नहीं होगी ।'
पूज्यश्री ने आनंद पूर्वक पच्चक्खाण के साथ आशीर्वाद दिये !... लेकिन यह क्या ?... कुछ दिन बाद पुन: वे श्रावक म.सा. के पास आये।
और अभिग्रह पच्चक्खाण देने के लिए विज्ञप्ति की । पूज्यश्रीने पूछा - 'अब किस बात का अभिग्रह लेना है ?... जवाब मिला - . 'ब्रह्मचर्य का' !! 'वह अभिग्रह तो आप कुछ ही दिन पहले ले गये हैं न ?
"जी हाँ, किन्तु पीछे से मुझे विचार आया कि महिने में २ दिन याने कि ४८ घंटे तक अविरति का भयंकर पाप मैं क्यो शिर पर लुं ? इसलिए अब दो दिनों में भी केवल ५-५ मिनिट की जयणा रखकर बाकी के समय के लिए भी ब्रह्मचर्य के पच्चक्खाण जीवन पर्यंत के लिए दे दो ताकि सालभर में कुल मिलाकर २ घंटे के सिवाय बाकी समय विरतिमय हो जाय !!..."
ऐसा अद्भुत प्रत्युत्तर सुनकर मुनिराज भी आश्चर्य चकित हो गये। सुश्रावक श्री रतिलालभाई की पापभीरुता और विरतिप्रेम देखकर अहोभाव के साथ पच्चक्खाण एवं आशीर्वाद दिये ।
ऐसे महान श्रावकरत्न रतिलालभाई आज विद्यमान नहीं हैं किन्तु उपरोक्त पूज्यपाद आचार्य भगवंतश्री के मुख से दो साल पूर्व शंखेश्वर महातीर्थ में यह दृष्टांत सुनकर यहाँ प्रस्तुत किया गया है ।
- रतिलालभाई के दृष्टांत द्वारा उन्होंने अनेक आत्माओं को ब्रह्मचर्य के विशिष्ट अभिग्रह दिये हैं । धन्य है श्री जिनशासन का कि जिसमें ऐसे श्रावकरत्न पैदा होते रहते हैं ।...