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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ गुरुवचन 'तहत्ति' करते हुए कम से कम ३ माह तक और जब तक पुनः वंदन करने के लिए नहीं आ सकें तब तक ब्रह्मचर्य पालन करने की प्रतिज्ञा ली।
एक वर्ष के बाद वे पुनः मुनिराजश्री के पास आये और आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत प्रदान करने की विज्ञप्ति की !
मुनिवरने उनको एक साल के लिए प्रतिज्ञा दी । इस तरह ४५ साल तक वे हर वर्ष आते रहे और हमेशा आजीवन व्रत देने के लिए विज्ञप्ति करते रहे । और हर बार मुनि श्री उनको एक साल की ही प्रतिज्ञा देते रहे ।
तीन साल पूर्व उनको एक साथ ५ वर्ष के लिए प्रतिज्ञा दी है। भरयुवावस्थामें भी असिधाराव्रत को स्वीकार करने की कितनी तीव्र तमन्ना ! एक ही कमरेमें शयन करने के बाबजूद उनको मनमें भी अब्रह्म का विचार तक नहीं आता है । कितने पवित्र ! हे जैनों ! आप भी इनको हृदय से प्रणाम करके ऐसे सद्गुणों की प्राप्ति के लिए प्रभुप्रार्थना करके अपनी आत्माको पवित्र बनाओ यही शुभाभिलाषा ।
२५ साल की युवावस्थामें, वर्ष में केवल २ घंटे १२२ की जयणा के साथ आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत
स्वीकारनेवाले आकोला के रतिलालभाई आज से ३२ साल पहले की बात है । महाराष्ट्र के आकोला शहरमें सागर समुदाय के एक महान तपस्वी मुनिराज श्रीनवरत्नसागरजी म.सा. (हाल आचार्य) उपाश्रय में बिराजमान थे। उनके पास २५ साल की उम्र के रतिलालभाई नामके एक श्रावक आये । वंदनविधि करने के बाद उन्होंने अभिग्रह पच्चक्खाण देने की विज्ञप्ति की । पूज्यश्री ने पूछा - 'भाग्यशाली ! कैसा अभिग्रह लेना है?' जवाब मिला - 'ब्रह्मचर्य का'!... 'कितने दिनों के लिए ?...' 'प्रति माह २८ दिनों के लिए - आजीवन !..'