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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २
_ २६१ विशुद्ध रूपसे पालन करते हैं । हररोज जिनपूजा करते हैं । नीतिपूर्वक व्यवसाय करते हैं और अत्यंत सादगी युक्त पवित्र जीवन जीते हैं । घरमें टी.वी. आदि आधुनिक साधन नहीं बसाये हैं । समाजमें उनकी अच्छी प्रतिष्ठा है। समता गुणको उन्होंने अच्छी तरह से आत्मसात् किया है। प्रतिकूल प्रसंगों में भी वे समता से चलित नहीं होते हैं । संतति नहीं होने के कारण कभी कोई उनकी घर्मपत्नी को कुछ अनुचित शब्द सुनाते हैं तो भी वे समझा-बुझाकर पत्नी के मनका समाधान कर देते हैं और अपने व्रत को गुप्त रखते हुए दृढता से पालन करते हैं एवं आत्म साधना के पथ पर आगे बढते रहते हैं।
भास्करभाई एवं उनकी धर्मपत्नी के ब्रह्मचर्य की और आत्मसाधना की भूरिश: हार्दिक अनुमोदना ।
बेमिसाल ब्रह्मचर्य गति का पालन
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हम उन सुश्रावकश्री का 'त्रिभुवनभानुगुणप्रिय' के नाम से उल्लेख करेंगे। सरकारी गेझेटेड कक्षा के वे अधिकारी थे। उनकी धर्मपत्नी सुशील और धर्मनिष्ठ सुश्राविका है।
इस दंपती को एक ही पुत्र था मंगर वह ८ साल की छोटी-सी उम्र में ही अल्पकालीन बीमारी के बाद चल बसा । संसार सुखों की अनित्यता, असरणता आदि की बातें उन्होंने सद्गुरुओं के मुख से सुनी थी। पुत्र गमन के बाद धर्मपत्नीने अपने पतिदेव से कहा - 'अब हमें दूसरी संतान नहीं चाहिए,
और कटु विपाकवाले सांसारिक भोग भी नहीं चाहिए । आपकी संमति हो तो अब हम गुरुदेव के पास जाकर ब्रह्मचर्य व्रत का स्वीकार करें ।'
धर्मपत्नी की धर्मप्रेरक बात सुनकर सुश्रावक गहरे चिंतनमें उतर गये। कुछ ही समय के बाद सद्गुरु की विशिष्ट प्रेरणा से इस दंपतीने ३२ और ३५ साल की भर युवावस्थामें आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार कर लिया।
इस असिधारा व्रतका सुविशुद्ध रूप से पालन करने के लिए दोनों बडे