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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ है, मगर वर्तमान कलियुग में भी उसी कच्छ की धरती के एक पवित्र दंपती की बात जानने मिली है जो शादी करने के बावजूद भी आत्मसाधना के लिए स्वेच्छासे आजीवन ब्रह्मचारी रहे हुए हैं।
हम इस पवित्र आत्म साधक तेजस्वी युवक का भास्करभाई के नाम से यहाँ उल्लेख करेंगे । वे आज कई वर्षों से मुंबई में रहते हैं । उनके एक छोटे भाई ने दीक्षा अंगीकार की है। एक मुमुक्षु बहिन थी जो ८-१६-३१-४५-६१-७११०८ उपवास आदि तपश्चर्या द्वारा कर्म निर्जरा करके कौमार्य अवस्थामें ही स्वर्गस्थ हुई है। भास्करभाई को भी योगासन आदि सीख कर आत्मसाधना करने की तीव्र अभिलाषा थी। उसी अभिलाषा के निमित्त से उन्हें एक आत्म साधक महापुरुष का संपर्क हुआ। उन्हीं की प्रेरणा के मुताबिक भास्करभाईने आजीवन ब्रह्मचारी रहने का व्रत अंगीकार किया। कुछ समय के बाद उनकी माताजीने शादी करने के लिए भास्करभाईको आग्रह किया मगर शादी की बात को वे टलते ही रहे। कुछ कन्याओं के माँ-बाप की ओर से समाई के लिए प्रस्ताव भी आये मगर भास्करभाईने किसी के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया। आखिर एक दिन उनकी माँ ने आग्रह करते हुए कहा कि अब जो भी कन्या के माँ-बाप की
ओर से प्रस्ताव आयेगा उसका तू स्वीकार नहीं करेगा तो मैं अग्निस्नान कर लुंगी । नगरसेठ का घर होने से उनकी माँ को वंश परंपरा कायम रखने की भावना थी, इसीलिए उन्होंने धर्मनिष्ठ होते हुए भी अपने बेटे को विवाह के लिए इतना आग्रह किया था।
आखिर भास्करभाईने आत्म साधना के पथदर्शक महापुरुष के मार्गदर्शन के मुताबिक माताकी संतुष्टि के लिए शादी करके भी ब्रह्मचारी रहने का संकल्प किया। अपने साथ शादी करने के लिए इच्छुक कन्या को उन्होंने अपने पवित्र संकल्प एवं व्रतकी बात समझाकर उसकी संमति प्राप्त कर ली। बाद में दोनों की सगाई हई। सगाई के बाद भी विवाह की बात को दो वर्ष तक विलम्बित किया और दो वर्षों में वे अपनी धर्मपत्नी की मानसिकता को व्रत पालन सुविशुद्ध रूप से करने के लिए सुदृढ बनाते रहे । बादमें दोनों का विवाह हुआ । आज उस घटना को २९ साल बीत चुके हैं । अनेक प्रकार की प्रतिकूलताओं में से सजगता से पसार होते हुए वे दृढता पूर्वक ब्रह्मव्रत का