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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २
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। ४०० उपवास की भावना रखते हुए २११ उपवास |
के महा तपस्वी हीराचंदभाई रतनसी माणेक
गुजरात राज्य में कच्छ-सुजापुर गांव के निवासी श्री हीराचंदभाई रतनसीं छेडा व्यापार के निमित्त से केराला राज्य के कलिकट शहर में रहते हैं । कच्छ से सैंकड़ों मील दूर रहते हुए भी हीराचंदभाई के हृदयमें जैन धर्म के संस्कार बरकरार हैं । दि. १२-९-१९३७ के दिन जन्मे हुए हीराचंदभाई को पिता रतनसींभाई की ओर से धर्म के संस्कार संप्राप्त हुए । गुजरात से इतना दूर रहते हुए भी उन्होंने धर्म आराधना गौरव के साथ चालु रखी । इ.स. १९७४ से लेकर प्रति वर्ष पर्युषण में ८,९,११,१६,३२,३५ उपवास तक तपश्चर्या की । १६ महिनों तक छठ्ठ के पारणे छठ्ठ (२ उपवास) किये। आयंबिल की २५ ओलियाँ भी की ।
तप के साथ उन्होनें कभी भी अपने नित्य कर्तव्योंमें कमी नहीं रखी। व्यावसायिक एवं सामाजिक कार्यों के कारण कभी तपश्चर्या में गरम जल पीने का भी समय नहीं बचता था फिर भी तपश्चर्यां की लगन बढ़ती ही रही ।
दि. ४-३-९५ के दिन हृषीकेश की पावन भूमि पर उनको किसी योगसिद्ध महापुरुष के दर्शन हुए । हीराचंदभाई के हृदयमें तपका प्रकाश था, गुरुदेवों के परम आशीर्वाद थे और अब आध्यात्मिक महापुरुष के दर्शन हुए। उनके आशीर्वाद से तपश्चर्या के मार्ग से आध्यात्मिक उन्नति को पानेकी अभिलाषा जगी । इसी समयमें २०१ उपवास के तपस्वी सहज मुनि की बात भी उन्होंने सुनी ।
अभी तक ३५ उपवास तक की तपश्चर्या करने वाले हीराचंदभाई को अपने सत्त्व की कसौटी करने की भावना हुई । प्रारंभ में १११ उपवास करने का संकल्प किया लेकिन ४० वें उपवास के दिन उनका स्वास्थ्य कुछ कमजोर हुआ। करीब ४ दिन तक शरीरमें कुछ अस्वस्थता लगी, मगर बादमें आत्मबल से देह पर विजय पाया और तप यात्रा चालु रखी। ...
एन्जिनीयरींग में बी.इ. मिकेनीकल की डीग्री पानेवाले हीराचंदभाई को साहित्य एवं संशोधन के विषयमें भी काफी रस है । कलिकट जैसे