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________________ २०८ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ शहर में एकबार उन्होंने गुजराती स्कूल बनवाने का संकल्प किया । कार्य बहुत कठीन था मगर हीराचंदभाई का संकल्प भी उतना ही सुदृढ था । उन्होंने निश्चय किया कि जब तक विशाल सभागृह युक्त स्कूल नहीं बनावाऊँ तब तक पाँवमें जूते नहीं पहनूँगा । . मध्यम वर्ग के मनुष्य के लिए यह संकल्प बहुत बड़ा था । कई लोग मजाक करते हुए हीराचंदभाई को कहते भी थे कि-'खुद गुजरात में से भी गुजराती भाषा के प्रति लगाव कम होता जा रहा है तब आप कलिकट में गुजराती स्कूल बनाने के दिवा स्वप्न क्यों देखते हैं ?' कोई कहते थे कि हम बच्चों को अंग्रेजी स्कूलमें भेजेंगे, फिर गुजराती स्कूल की क्या जरूरत है ?' ___तपश्चर्या की यही विशेषता है कि मनुष्य के आभ्यंतर जीवन की तरह बाह्य जीवन को भी सुदृढ बनाती है । हीराचंदभाई को तप के प्रभावसे विचारों की शुध्धि और कार्यक्रम की रूपरेखा के विषयमें स्पष्ट दर्शन था । ५ वर्ष तक कड़ी सर्दी और भयंकर धूपमें भी जूते बिना घूमते रहे । उनका व्यवसाय भी ऐसा था कि कई स्थानों पर घूमना ही पड़ता था । शुरू में सिंधीया स्टीम नेवीगेशनमें अजन्ट थे और बाद में श्रीफल के व्यापारी के रूपमे उन्होंने अच्छी प्रतिष्ठा अर्जित की थी। आखिर गुजराती समाज का मकान तैयार हो गया । एशिया के प्रथम १० सभागृहों में स्थान पा सके ऐसा भव्य सभागृह तैयार हुआ । कलिकट का गुजराती समाज कच्छ की धरती के इस सपूत पर फिदा हो गया । उसने चमड़े आदि के जूते नहीं पहनने की प्रतिज्ञा करने वाले हीराचंदभाई का सन्मान चांदी के जूते अर्पण करके किया । कई वर्षों तक वे गुजराती समाज के अध्यक्ष पद पर रहे। साहित्य की तरह संशोधनमें भी उनको काफी दिलचश्पी रही है। धर्म और विज्ञान दोनों मनुष्य जीवन की आँखें हैं । इसलिए हीराचंदभाई ने दि. १९-६-९५ से दीर्ध तपश्चर्या का प्रारंभ किया तब चिकित्सों को भी साथमें रखा । कलिकटकी हॉस्पीटल के डॉ. सी.के. रामचंद्रन प्रति सप्ताह उनकी शारीरिक जाँच करते थे । इग्लेंडमें FR.C.P. और M.R.C.P. की
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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