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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २
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| नवकार महामंत्र के प्रभावसे केन्सर को केन्सल । करानेवाले धीरजलालभाई खीमजी गंगर
___ अनादिकालीन महा भयंकर भवरोग को मिटाने के लिए महान धन्वंतरी वैद्यराज समान श्री नवकार महामंत्र के प्रभाव से केन्सर जैसे असाध्य माने जाते बाह्य रोग केन्सल (नष्ट) हो जायें इसमें जरा भी आश्चर्य नहीं है, मगर इसके लिए आवश्यक है साधक के हृदय की भद्रिकता, एकाग्रता और नवकार महामंत्र के प्रति सच्ची शरणागति ।
ऐसी भद्रिकता, एकाग्रता और शरणागति के द्वारा नवकार महामंत्रको सिद्ध करके, अद्भुत आध्यात्मिक अनुभूतियों के आनंदमें अहर्निश मस्त रहनेवाले सुश्रावक श्री धीरजलालभाई खीमजी गंगर (उ.व. ५२) आजसे करीब १२ साल पूर्व अचलगच्छीय मुनिराज श्री सर्वोदयसागरजी म.सा. की प्रेरणासे धर्ममें जुड़े।
मूलतः कच्छ-मेराउ गाँवके निवासी धीरजलालभाई वर्तमानमें मुंबई में पंतनगर विस्तार में रहते हैं । संसार पक्षमें उनके गाँवके एवं संबंधी ऐसे उपरोक्त मुनिराज की प्रेरणासे गुरुवंदन और चैत्यवंदन के सूत्र सीखने के बाद उनके अर्थका अभ्यास करते समय उवसग्गहरं स्तोत्रके अर्थमें परमात्मा को किये जानेवाले नमस्कार का प्रभाव जानकर अत्यंत अहोभावसे भावित हुए । उसके बाद अध्यात्मयोगी प.पू. पंन्यास प्रवर श्री भद्रंकर विजयजी म.सा. द्वारा लिखित नमस्कार महामंत्र संबंधी साहित्य एवं कस्तूर प्रकाशन ट्रस्ट-मुंबई द्वारा प्रकाशित 'जेना हैये श्री नवकार, तेने करशे शुं संसार ?' (संपादक-गणिवर्य श्री महोदयसागररजी म.सा.) पुस्तकमें नवकार महामंत्र के प्रभाव सूचक अनेक अर्वाचीन दृष्टांत पढ़कर नवकार महामंत्र के प्रति आकर्षण उत्पन्न हुआ। गुरुमुखसे नवकार महामंत्रको ग्रहण करके विधि पूर्वक जप का प्रारंभ किया । हृदय की साहजिक भद्रिकता - सरलता और श्रद्धा के कारण जपमें सुंदर तन्मयता होती थी । फलतः अल्प समयमें ही विविध प्रकार की आध्यात्मिक अनुभूतियाँ होने लगीं।
विजयजी । उसके बाद अध्यापार का प्रभाव जानकर