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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २
१९३ जप के प्रभावसे धीरजभाई को कभी गोदोहिका आसनमें तो कभी कायोत्सर्ग मुद्रामें, इस तरह अलग अलग प्रकारसे कुल ७ बार 'भगवान श्री महावीर स्वामी के साक्षात् स्वरूप का (प्रतिमास्वरूप का नहीं) दर्शन हुआ है । २ बार गणधर भगवंत श्री गौतम स्वामी के भी मानो साक्षात् स्वरूपमें ही दर्शन हुए हैं। मनमें जो भी इच्छा या संकल्प उठे वह अनायास ही तत्काल परिपूर्ण होने लगे। मनमें कुछ भी प्रश्न उठता तो वे जिनालयमें जाकर, नवकार महामंत्र का स्मरण करके, छोटे बच्चे की तरह सरल हृदयसे परमात्मा को प्रश्न पूछते हैं और श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ भगवान मानो साक्षात् बातचीत करते हों इस प्रकारसे उनको प्रत्युत्तर देते हैं । उसी प्रत्युत्तर के अनुसार आगामी कालमें घटनाएं घटने लगी, ऐसा कई बार अनुभव होने लगा। एकबार किसी निमित्तवशात् धीरजभाईने अपनी धर्मपत्नी सुश्राविका दिव्याबहन के उपर गुस्सा किया और बादमें जब वे मंदिरमें पूजा करने के लिए. गये तब परमात्माने उनसे कहा कि - 'पहले घर जाकर दिव्याबहनसे क्षमा याचना करो, बादमें ही तुम्हारी पूजा का स्वीकार होगा' और सचमुच धीरजभाई ने वैसा किया तभी उनकी पूजा का स्वीकार हुआ !.....
एक बार महाराष्ट्र के डीग्रस शहरमें १८ अभिषेक प्रसंगमें धीरजभाई गये थे । वहाँ उनको विचार आया कि - ' प्रभु भक्ति के ऐसे शुभ प्रसंगों में देव-देवी भी साक्षात् पधारते हैं, तो मुझे उनका दर्शन मिले तो कितना अच्छा हो !' और तुरंत दो देवियों का उनको दर्शन हुआ । साथमें प्रभुजी का भी साक्षात् दर्शन हुआ । देवियों का रूप अद्भुत था लेकिन परमात्मा का रूप तो उनसे कई गुना अधिक अद्भुत और अलौकिक था ।
एक बार धर्मपत्नी दिव्याबहनने धीरजभाई को पूछा कि 'पंतनगरमें हाल छोटासा गृह मंदिर है, उसकी जगह बड़ा जिनालय कष बनेगा ?' नवकार महामंत्र के जप के प्रभावसे धीरजभाई ने प्रत्युत्तर दिया कि - 'तीन महिनों में हो जायेगा और सचमुच वैसा ही हुआ ।
ऐसे तो कई अनुभव उनको होते रहते हैं, जिसका विस्तृत वर्णन बहुरत्ना वसुंधरा - २-13