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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २
१९१ दीवारों पर आत्म जागृति प्रेरक सुवाक्य लिखे हुए हैं । स्वयं पौषध लेकर पौषध कक्षमें ही रहते थे । भोजनमें अनेक चीजों का त्याग कई वर्षों से था, जिसका विशेष वर्णन उनके जीवन के विषयमें प्रकाशित हुई किताबमें दिया गया है।
पिछले दीर्ध समयसे वे अठ्ठम के पारणे अठ्ठम करते थे और पारणे में भी केवल ५ सामान्य द्रव्यों से ठाम चौविहार एकाशन ही करते थे !!!
बिना नमक के चावल (भात), बिना सक्कर का दूध और चने इत्यादि ५ द्रव्योंसे ठाम चौविहार एकाशन करके दूसरे दिनसे पुन: वे अठुम तप का प्रारंभ कर देते थे !...
ऐसी उग्र तपश्चर्या करने के बाबजूद भी उनकी मुखमुद्रा पर जरा सी भी ग्लानि या म्लानि दृष्टि गोचर नहीं होती थी । बल्कि अद्भुत प्रसन्नता और विशिष्ट तेज हमेशा दृष्टि गोचर होता था ।
उनका जन्म आठ कोटि नानी (छोय) पक्षके स्थानकवासी परिवारमें हुआ था, मगर वे मंदिर मार्गी साधु-साध्वीजी भगवंतों के प्रति भी अत्यंत आदरवाले थे और उनको भावसे बहोराते थे ।
विशिष्ट जीवदयाप्रेमी प्रेमजीभाईने समस्त जीवराशि के प्रति लोकोत्तर प्रेमभाव आत्मसात् करके अपने नाम और जीवनको सार्थक बनाया था । उनके जीवनमें से सभी यथाशक्ति प्रेरणा पाकर अपने जीवनको सार्थक बनायें यही शुभेच्छा । प्रेमजीभाई के सुपुत्र मुबईमें बीच केन्डीमें रहते हैं ।