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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ स्वस्थ होते हुए भी आजीवन अपने मकानसे बाहर नहीं जानेका संकल्प करनेवाले बेजोड़
आराधक प्रेमजीभाई (प्रेम सन्सवाले) कच्छ-मुन्द्रा तहसील के कांडागरा गाँवमें सुश्रावक श्री प्रेमजीभाई (प्रेमसन्सवाले) अद्भुत आराधना के द्वारा अपना जीवन सफल बना गये
और अनेकों के लिए प्रेरणा रूप बनते गये । ३ साल पूर्वमें अनसन द्वारा, अपूर्व समाधि पूर्वक स्वर्गस्थ बने हुए प्रेमजीभाई करोड़पति एवं आरोग्य संपन्न होते हुए भी आत्म साधना के लक्ष्यसे उन्होंने पिछले करीब १० सालसे आजीवन अपने मकानसे बाहर नहीं जानेका संकल्प किया था । कैसा अद्भुत होगा उनका संवरभाव । कैसी बेमिशाल होगी उनकी आत्म तृप्ति और आत्म मस्ती !!!....
आज कल कई धनिक लोग केवल मौज-शौक या घूमने के लिए लंडन-पेरीस,, हॉगकॉग आदि विदेशोंमें जाते हैं, लेकिन जब तक आत्म तृप्ति का अनुभव नहीं होगा तब तक दुनिया भरमें घूमने के बाबजूद भी सच्ची शांति का अनुभव अशक्य ही है । और जिन्होंने साधना के द्वारा स्वाधीन और साहजिक ऐसे आत्मिक आनंदका अनुभव किया होता है ऐसे साधक घरमें या वनमें, स्मशानमें या गुफामें कहीं भी हों तो भी प्रसन्नता के महासागरमें हमेशा निमग्न रहते हैं । ऐसे महापुरुषों को "मुड" लाने के लिए या "माइन्ड फेस" करने के लिए बाहर कहीं भी घूमने-फिरने की जरूरत ही नहीं रहती या टी.वी. विडियो इत्यादि माने हुए मनोरंजक साधनों की भी पराधीनता नहीं भुगतनी पड़ती । इस बात का प्रत्यक्ष . उदाहरण प्रेमजीभाई थे।
वे अगर चाहते तो अपने बंगलेमें हर प्रकार के मौज-शौक की आधुनिक सामग्री बसा सकते थे। फिर भी - 'बाह्य किसी भी पदार्थमें सुख नहीं है, सच्चा सुख तो आत्मामें है और उसका अनुभव करने के लिए सर्वथा नि:स्पृह बनने की जरूरत है' ऐसा स्पष्ट रूपसे समझते हुए प्रेमजीभाईने अपने घरका माहौल उपाश्रय जैसा सादगी पूर्ण और रत्नत्रयी के उपकरणों से अलंकृत बनाया था । उनके घरकी प्रत्येक