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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ सुनाने से वे दूर हो गये और दामजीभाई लंगड़ाबाबा के निवास स्थानमें पहँच गये और उनको प्रणाम किया।
महात्माजी ने प्रथम तो उनकी परीक्षा करने के लिए कठोर शब्दोंमें कहा - 'क्यों आये हो यहाँ ? चले जाओ यहाँ से ।' दामजीभाईने नम्रतासे प्रत्युत्तर दिया तो भी विशेष परीक्षा करने के लिए उनका गला पकड़ करके टेकरीसे नीचे फेंक देने के लिए तैयार हो गये । तो भी दामजीभाई डरे नहीं और नवकार महामंत्र का स्मरण करते रहे ! आखिरमें उनकी हिंमत और दृढ श्रद्धा देखकर महात्माजी प्रसन्न हुए और उनको नवकार महामंत्र की साधना के विषयमें सुंदर मार्गदर्शन दिया ।
पंच परमेष्ठी के पाँच रंगों के साथ पंच भूतमय हमारे शरीरमें और विश्वमें रहे हुए पाँच रंगों का संबंध समझाया और हमारे शरीरमें रीढ की हड्डीमें आयी हुई सुषुम्णा नाड़ीमें रहे हुए मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूर, अनाहत, विशुद्धि, आज्ञा और सहस्त्रार नाम के सात चक्रों पर नवकार महामंत्र का जप करने की विधि समझायी । दामजीभाई को तो मानो अमृतभोजन मिला हो उतना आनंद हुआ । घर आकर वे महात्माजी के मार्गदर्शन के मुताबिक वे प्रतिदिन रातको और ब्राह्म मुहूर्तमें घंटों तक नवकार महामंत्र की साधना करने लगे । जब जब मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है तब दूरभाष (टेलिफोन) की तरह महात्माजी की आवाज स्वयमेव दामजीभाई को सुनाई देती है । इस तरह दूर बैठे बैठे भी वे अपने शिष्य की देखभाल करते हैं ।
उपरोक्त घटना के बाद हर पल १०-१० साल के बाद वे दामजीभाई को दिल्ली-आबु-कन्याकुमारी और नेपालमें क्रमशः प्रत्यक्ष मिलते रहे हैं ।
____ साधना के प्रभावसे दामजीभाई को विविध प्रकारकी आध्यात्मिक अनुभूतियाँ होती रही हैं, मगर महात्माजी के मार्गदर्शन के मुताबिक वे उन्हें गुप्त रखना ही पसंद करते हैं; लेकिन योग्य जिज्ञासु मुमुक्षुओं को वे नवकार महामंत्र की आराधना के विषयमें नि:संकोच भावसे मार्गदर्शन देते रहते हैं। कई बार विदेशों से भी उनको निमंत्रण मिलते हैं और वे विदेश