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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ कि कपास का सट्टा बंद करने का वटहुकम जाहिर कर दें और कपास का भाव भी कम कर दें, तो मैं बड़ी हानिसे बच सकूँगा और आपका उपकार कभी भी नहीं भूलँगा। उनकी बात सुनकर दामजीभाईने वैसा करवाया, फलतः उस भाई के ३ करोड रूपये बच गये ।
उस वक्त उस मारवाड़ी भाईने अपने मनमें संकल्प किया था कि अगर मेरे ३ करोड़ रूपये बच जायेंगे तो १ करोड़ रूपये दामजीभाई को दूंगा । इस संकल्प की बात उन्होंने दामजीभाई को बतायी नहीं थी । फिर भी दामजीभाई की आर्थिक विषम परिस्थिति की खबर मिलते ही उन्होंने स्वयमेव फोन करके दामजीभाई को १ करोड रूपये अर्पण कर दिये । दामजीभाई संकट से पार हो गये । कपास के बड़े बड़े व्यापारी भी दामजीभाई के प्रति आदर की दृष्टिसे देखने लगे ।
इस प्रसंग के बाद दामजीभाई प्रतिदिन प.पू. आचार्य भगवंत श्री के पास जाने लगे । पूज्यश्रीने भी उन पर कृपा दृष्टि बरसायी और जैन धर्म का मर्म समझाकर नवकार महामंत्र की आराधनामें जोड़ा । दामजीभाई के भाग्य के द्वार खुल गये और नियति उनको और भी आगे बढाने के लिए चाहती हो वैसी एक विशिष्ट घटना उनके जीवनमें घटित हुई ।
एक बार वे पुनामें एक लायब्रेरीमें बैठकर योग, प्राणायाम और स्वरोदय संबंधी किताबें पढ़ रहे थे तब एक अजनबी महात्मा उनके पास आकर कहने लगे, 'आपको जिसकी चाहना है वह आपको हिमालयमें हर द्वारमें लंगड़ाबाबाकी टेकरी (छोटी सी पहाड़ी) है वहाँ मिल जायेगा ' ।
दामजीभाई का जिज्ञासु और साहसिक हृदय यह सुनकर अत्यंत हर्षित हो गया और कुछ दिन बाद वे सचमुच हवाई जहाज और रेलगाडी द्वारा हरद्वार पहुँच गये । वहाँ जाकर उन्होंने लंगड़ाबाबा की पूछताछ की तब लोगोंने बताया कि - 'आप उनके पास जाओ भले, मगर वे आपको मार पीटकर निकाल देंगे!'... दामजीभाईने कहा 'जो मेरे भाग्यमें होगा, वैसा होगा ।'
बादमें वे हिंमत करके नवकार महामंत्र का स्मरण करते हुए उपर चढने लगे । रास्तेमें अजगर और दो हाथी क्रमशः मिले । ७-७ नवकार