________________
१७८
बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ देहावसान हो गया । अब वह धनराशि चुकाने की जिम्मेदारी दामजीभाई पर आ पड़ी, इसलिए वे चिंतामग्न हो गये । उनको चिंतातुर देखकर एक श्रावक उनको दादरमें कबूतर खाना के पास शांतिनाथ जिनालय के उपाश्रयमें चातुर्मास बिराजमान परम शासन प्रभावक प.पू.आ.भ. श्रीमद् विजय लक्ष्मणसूरीश्वरजी म.सा. के पास ले गये ।
उस वक्त दामजीभाई नास्तिक जैसे थे । धर्म के प्रति उनको जरा भी आस्था नहीं थी । यह जानकर आचार्य भगवंतने उनको कहा कि'नास्तिकता को छोड़ दो । जैन धर्ममें अनेक उत्तम मंत्र हैं । आपको मैं एक मंत्र देता हूँ, ३ दिन तक कुछ भी खाये पीये बिना अर्थात् चौविहार अठ्ठम तप करके इस मंत्रका जप करना होगा । मैं जानता हूँ कि नास्तिक होने से आपके पास दीपक, अगरबत्ती, आसन इत्यादि कुछ भी नहीं होगा। इसलिए आप कुर्सी पर बैठकर, पूर्व दिशाकी ओर मुँह रखकर, इस मंत्रका जप करें । रातको केवल २-३ घंटोंसे अधिक समय सोना नहीं । इस प्रकार से मंत्र जप करने द्वारा ३ दिनोमें अगर ९० लाख रूपये मिल जायें तो मेरे पास आना, मैं आपको धर्म में जोड़ दूंगा' !!... (वह मंत्र था - 'ॐ परमगुरु - गुरुभ्यो नमः स्वाहा') _ 'डूबता हुआ मनुष्य तृण को पकड़ने के लिए भी तैयार हो जाता है।' इस उक्ति के अनुसार दामजीभाई इस अनुष्ठान को करने के लिए तैयार हो गये... और तीसरे ही दिन जैसे कोई चमत्कार ही हुआ हो उसी तरह एक मारवाड़ीभाईने उनको फोन द्वारा अपने घर पर बुलवाकर १ करोड़ रूपये सामने से भेंट के रूपमें दे दिये !
दामजीभाई के आश्चर्य और अहोभाव का पार न रहा । परम पूज्य आचार्य भगवंत के प्रति और जैन धर्म के प्रति उनके हृदयमें अपार श्रद्धा और आदर उत्पन्न हो गये ।
बात ऐसी हुई थी कि, एक वर्ष पूर्वमें उपरोक्त मारवाड़ीभाई को कपास के सट्टेमें ३ करोड रूपयों की हानि होनेकी परिस्थिति का सर्जन हुआ था। तब वे भाई दामजीभाई के पास आकर कहने लगे कि - 'अंग्रेज गवर्नर के साथ आपकी अच्छी मित्रता है, तो आप उनको समझाइए