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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २
१७७ हिमालय के सिद्धयोगी महात्मा के मार्गदर्शन अनुसार नवकार महामंत्र की साधना करनेवाले
श्री दामजीभाई जेठाभाई लोडाया । मंत्राधिराज श्री नवकार महामंत्र !... जिसके विषयमें गाया जाता है कि " योगी समरे भोगी समरे, समरे राजा रंक । देवो समरे दानव समरे, समरे सहु निःशंक ॥"
ऐसे महामंत्र नवकार का स्मरण जैन कुलोत्पन्न प्रत्येक मनुष्य अल्पाधिक मात्रा में भी करते हैं इसमें आश्चर्य नहीं, लेकिन हिमालय में रहते हुए सैंकड़ों वर्ष की उम्रवाले सिद्धयोगी महात्मा भी नवकार महामंत्र का आलंबन लेकर योग साधना करते हैं । यह बात निम्नोक्त दृष्टांत से जानकर महामंत्र की सर्व व्यापकता देखकर सानंद आश्चर्य के साथ अहोभाव वृद्धिंगत हुए बिना रहता नहीं ।
मूलतः कच्छ-सुथरी गाँव के निवासी लेकिन हाल मुंबई-दादरमें रहते हुए सुश्रावक श्री दामजीभाई जेठाभाई लोड़ाया (उम्र वर्ष ८८) पिछले ५२ वर्षों से हिमालय के ऐसे योगीराज के मार्गदर्शन के अनुसार नवकार महामंत्र के आलंबनसे योग साधना कर रहे हैं । आईए, हम उनके जीवनमें थोड़ा दृष्टिपात करें।
दामजीभाई के पिताश्री जेठाभाई उज्जैन (म.प्र.) में कपास का व्यापार करते थे । इसलिए उज्जैनमें स्नातक बने हुए दामजीभाई उनके चाचा श्री वालजीभाई लधाभाई की मुंबईमें कपास की बड़ी पेढी चलती थी उसमें हिस्सेदार के रूपमें शामिल हुए।
दामजीभाई ने अपने चाचाश्री को सट्टा नहीं करने की विज्ञप्ति की, मगर भवितव्यतावशात् अन्य तीन व्यापारियों के आग्रहसे अपनी कंपनी के नाम से बड़ा सट्टा किया और कर्म संयोग से उसमें ९० लाख रूपयों की हानि हुई। दूसरे व्यापारियोंने वालजीभाईसे नाता तोड़ दिया इसलिए वालजीभाई की कंपनीको इतनी भारी राशि चुकाने की जिम्मेदारी आ गयी। इसके आघातसे उनको हृदय का दौरा पड़ गया और उनका बहुरत्ना वसुंध - २-12