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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ ये सभी अनुभूतियाँ अंत:करण की विशुद्धि के संसूचक हैं । आत्मा की अत्यंत लघुकर्मिता के ज्ञापक हैं । निरंजन-निराकार परमानंदमय आत्मानुभवकी अत्यंत नजदीक की उत्तम अवस्था के द्योतक हैं । विशेष तो ज्ञानी भगवंत या उच्चतर भूमिका वाले साधक या सिद्धयोगी महापुरुष कह सकते हैं ।
महान योगीराज श्री आनंदघनजी महाराज द्वारा विरचित स्तवन चौबीसी के विषयमें स्वानुभव द्वारा सुंदर विवेचन खीमजीभाईने हस्त लिखित पोथीमें लिखा है जो आत्मार्थी मुमुक्षुओं के लिए खास पठनीय है।
इस दृष्टांत को पढकर कोई भी ऐसा नहीं सोचें कि- 'हम भी इसी तरह उत्तरावस्था में आत्म साधना कर लेंगे, अभी तो अर्थोपार्जन करके मौज कर लें'... क्योंकि जीवन का कोई भरोसा नहीं है, इसलिए धर्मकार्यमें विलंब करना श्रेयस्कर नहीं होता ।
संयोगवशात् जो मनुष्य युवावस्थामें साधना नहीं कर सके हैं और जिनकी उत्तरावस्था का प्रारंभ हो चुका है ऐसे मनुष्य हताश न बनें, किन्तु इस दृष्टांतमें से प्रेरणा पाकर " जब जागे तब सुबह " समझकर आत्म साधनामें आगे बढ़ें यही शुभेच्छा है ।
___खीमजीभाई हाल संयोगवशात् मुंबईमें अपने सुपुत्र मणिलालभाई के साथ रहते हैं । वृद्धावस्था के कारण बाह्य दृष्टि से साधना के क्रममें थोड़ी कमी जरूर हुई है मगर आभ्यंतर भावधारा तो उत्तरोत्तर विशुद्धविशुद्धतर बनती जा रही है ऐसी प्रतीति उन्हें हो रही है। खीमजीभाई की तस्वीर पेजनं 25 के सामने प्रकाशित की गयी है। -
पता : खीमजीभाई वालजी बोरा Clo. मणिलालभाई खीमजी वोरा डी-९, समीर एपार्टमेन्ट समतानगर, (साइनगर), मु.पो.वसई रोड (पश्चिम) जि. थाणा, (महाराष्ट्र) पिन : ४०१२०२ फोन : 0250-332769 PP. महेन्द्रभाई, प्रतीक्षा बहन