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बहुरत्ना वसुंधरां : भाग २
नाद... इत्यादि विविध नाद के अनुभव होने लगे ।
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(२) वि. सं. २०३६ अनुभूतियाँ होने लगीं ।
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से प्रकाश की भी विभिन्न प्रकार की
(३). वि. सं. २०४८ में मृगशीर्ष शुक्ल १२ से फाल्गुन शुक्ल ६ तक पौने तीन महिनों के दौरान प्रतिदिन दोनों आंखोंमेंसे प्रकाश के कण बाहर निकलते हुए प्रतीत होने लगे ।
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(४) उसके बाद फाल्गुन शुक्ल ६, दि. १०-३-९२ के दिन रात को ३ बजे साधनामें विशिष्ट अनुभव हुआ । एक लम्बी गुफा थी । उसके उपर छत नहीं थी । उसके एक छोर में से सूर्य समान जाज्वल्यमान प्रकाश का जोरदार प्रवाह प्रारंभ होकर दूसरे छोरमें से बाहर निकलता हुआ अनुभवमें आया। परिणामतः वहाँ का संपूर्ण आकाश मंडल प्रकाशसे व्याप्त हो गया था । निरंतर ३ घंटे तक यह अनुभव चालु रहा था !...
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(५) सं. २०५३ में मृगशीर्ष शुक्ल १०, गुरुवार, दि. १९-१२-९६ के दिन सुबह ९-३० बजे आज्ञा चक्रमें मणिरत्नों का प्रकाश पुंज प्रवेश कर रहा है और भीतर का संपूर्ण आकाश प्रदेश प्रकाशसे व्याप्त हो गया है ऐसी अनुभूति करीब ५ मिनट तक चालु रही ।
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(६) उपरोक्त अनुभूति के ३ दिन बादमें दि. २२ - १२-९६ के दिन सुबह ९-३० बजे साधना के दौरान मस्तकमें सहस्रारचक्रमें से हजारों चन्द्रसे भी अधिक शीतल एवं जाज्वल्यमान प्रकाश आकाशमें जा रहा है ऐसा दिव्य अनुभव हुआ जो करीब ५ मिनट तक चालु रहा था । (७) दि. १६/१७ -९-९७ की रात को १२ से २ बजे के दौरान निद्रामें यकायक ॐकार नाद नाभिसे प्रारंभ होकर हृदय, कंठ और ललाट में से पसार होकर ब्रह्मरंध्र में प्रवेश करता हुआ अनुभवमें आया । इस नाद के साथ ॐ ह्रीं अहँ नमः का लयबद्ध जप सारी रात स्वयमेव चालु
रहता था ।
(८) दि. १८/१९/२० -९-९७ की रात को १२ से २ के बीच तुंही - तुंही का नाद हृदय में प्रारंभ हुआ जो १५ मिनट तक चलता था ।