________________
१७४
बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ स्वरूप की मानो झलक थी। खीमजीभाई के रोम रोममें अवर्णनीय आनंद के पूर उमड़े ! स्वयं की अवस्था भी मानो वीतरागतामय हो गयी !... लेकिन वह आकृति २-३ मिनटमें ही अदृश्य हो गयी और खीमजीभाई की एक आँखमें से प्रभु दर्शन के कारण हर्ष और अहोभाव जन्य एवं दूसरी आँखमें से पुनः प्रभु विरह की वेदना जन्य अश्रुधारा १ घंटे तक अस्खलित रूप से चालु रही !... कई दिनों तक इस अनुभूति के आनंद का आस्वाद उनके जीवनमें चालु रहा ।
वे स्वानुभव के आधार से कहते हैं कि - 'अपनी पुकार अगर सच्ची हो, अंतरतमकी गहराईसे उठती हो, तो प्रभुदर्शन के लिए क्षेत्र और कालका व्यवधान बाधक नहीं बनता है । आज भी यहाँ बैठे बैठे सीमंधर स्वामी भगवान के दर्शन अशक्य नहीं हैं ।..
उपरोक्त अनुभव के बाद भी विविध प्रकार की आध्यात्मिक अनुभूतियाँ उनके जीवनमें होती रही हैं । परिणामतः यह दुर्लभ मनुष्य जीवनकी सफलता का अहसास उनको हो रहा है ।
साधना में विविध अनुभूतियाँ :- खीमजीभाई को आज तक साधनाके दौरान अनाहत नाद एवं प्रकाश दर्शन की कई प्रकार की अनुभूतियाँ होती रही हैं। उनमें से कुछ महत्त्व की अनुभूतियों का बयान यहाँ संक्षेपमें दिया जा रहा है । प्रकाश की अनुभूतियों का वर्णन दिनांक के साथ उन्हों ने अपनी डायरीमें लिखा हुआ है जो आज भी उपलभ्य है मगर अंनाहत नाद का वर्णन जो उन्होंने लिखा था वह आज उपलभ्य नहीं हो रहा, फिर भी जितना याद आया है, उन्होंने अन्य साधकों के हितार्थ यहाँ प्रस्तुत करना उचित समझा है।
. (१) वि. सं. २०३६में एक दिन रात को ३ बजे अचानक मानो मस्तक फट जायेगा ऐसा जोरदार घंटनाद मस्तकमें शुरू हुआ । साधना के दौरान ३ घंटों तक वह घंटनाद चालु ही रहा । उसके बाद वह धीरे धीरे मंद होता चला । बादमें थोड़े थोड़े दिनों के व्यवधान पूर्वक क्रमशः झल्लरी नाद... पखावज नाद... तबला नाद... वीणा नाद... शंख नाद... भेरी नाद... दुंदुभि नाद... महा नाद.... (सिंह नाद) मेघ नाद... समुद्र