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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २
१७३ चार बार ऐसे गाते थे कि सुननेवालों का भी हृदय और आँख आर्द्र हुए बिना रह नहीं सकते थे । मानो सचमुच ज्योतिषी देवताओं के स्वामी चन्द्र (इन्द्र) अपने सामने ही खड़े हों और उनके द्वारा अपनी विज्ञप्ति प्रभुजीसे निवेदित करते हों उस तरह इस स्तवन को वे गाते थे । उनके मुख से इस स्तवन को सुनना यह भी जीवन का एक अनमोल लाभ है । हमको २-३ बार उनके मुखसे इस स्तवन को सुनने का और उनकी साधना के साक्षीरूप साधनाकक्ष को देखने का लाभ मिला है।
वीतराग परमात्मा के आंतरिक स्वरूप की आंशिक भी अनुभूति प्राप्त करने के लक्ष्यसे उन्होंने ६ महिनों तक बिल्कुल एकांतवास में मौन पूर्वक साधना करने का दृढ संकल्प किया था । केवल २ बार घर जाकर मौन पूर्वक सात्त्विक भोजन करते थे एवं बाकी का सारा समय घर के पासमें पशुओं का चारा रखने के लिए एक छोटासा कक्ष था उसमें बैठकर सद्वांचन, आत्मचिंतन, जप, ध्यान, प्रार्थना आदि साधनामें निमग्न रहते थे। चित्तमें बिना प्रयोजन का एक भी विचार प्रवेश न करे इसके लिए वे अत्यंत जाग्रत रहते थे ।
.. इस तरह साधना करते हुए करीब ३ महिने जितना समय पसार हुआ था । बादमें वि. सं. २०३७ में माघ शुक्ल १४, मंगलवार, दि. १७-२-८१ के दिन दोपहर का करीब ३ बजने का समय था, तब उनको निम्नोक्त प्रकार की विशिष्ट अनुभूति हुई । गर्मी के दिन होते हुए भी बाहर के कोई अशुद्ध परमाणुओं का भीतरमें प्रवेश न हो इसी हेतुसे साधना कक्ष का एक मात्र दरवाजा था वह भी बंद रखा था, इतना ही नहीं किन्तु अंधकारमें चित्त की एकाग्रता शीघ्र होती है इसलिए मस्तक से लेकर पूरे शरीर को काले रंग के कम्बलसे ढक कर वे साधनामें बैठे थे । नित्य क्रमानुसार श्री सीमंधर स्वामी भगवान को प्रार्थना कर के साधनामें बैठे थे कि कुछ ही क्षणोंमें मन अचानक एकदम शांत हो गया और शरदपूर्णिमा के चंद्रसे भी करोड़ गुनी शीतल, उज्जवल तेजोमय पद्मासनस्थ वीतराग आकृति उनके बंद नेत्रों के समक्ष प्रकट हुई । जिसकी दीर्घकालसे तीव्र प्रतीक्षा थी वह साक्षात् श्री सीमंधर स्वामी परमात्मा के आंतरिक