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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग १
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१० सालकी उम्र में पंच प्रतिक्रमण सूत्र कंठस्थ करनेवाली नेपालियन बालिका लक्ष्मी
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वर्धमान तपोनिधि प. पू. आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय वारिषेणसूरीश्वरजी म.सा. का चातुर्मास सं. २०४९ में कलकत्तामें हुआ । तब वहाँ १० सालकी उम्र की लक्ष्मी नामकी नेपालियन बालिका रहती थी । उसकी पड़ोशमें जैन श्रावकका घर था । सत्संग और पूर्व जन्म के संस्कारवशात् उसको जैन साधु साध्वीजी और जैन धर्म के प्रति आकर्षण उत्पन्न हुआ । फलतः उसने पंच प्रतिक्रमण सूत्र १० वर्षकी बाल्यवय में कंठस्थ कर लिये थे । पाठशाला के सभी विद्यार्थीओं में वह प्रथम क्रमांक में उत्तीर्ण हुई। हररोज जिनपूजा, सामायिक और कुछ व्रत नियमों का वह पालन करने लगी। इतना ही नहीं किन्तु इस छोटी सी बालिका ने अपने माता पिताको भी शाकाहारी बनाने के लिए प्रयत्न किये । हार्दिक धन्यवाद लक्ष्मी को एवं उसका आत्मविकास करनेवाले सत्संग को ।
पंच प्रतिक्रमण कंठस्थ करनेवाली तीन दरजी बालिकाएँ
सौराष्ट्र के धोराजी गाँवमें दरजी की तीन सुपुत्रियाँ हैं । पिछले ४ सालसे उनको जैन धर्म का रंग लगा है । उनके पिताजी का अकस्मातमें निधन हो गया है । उनकी माँ उपाश्रय की सफाई का कार्य करती है । उपाश्रय के पीछे ही उनका घर है ।
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तीनों बहने हररोज प्रभुदर्शन और प्रतिक्रमण करती हैं । उन्होंने पंच प्रतिक्रमण सूत्र कंठस्थ कर लिये हैं । चातुर्मास आदिमें एकाशन, आयंबिल, उपवास आदि जो भी तपश्चर्याएँ और आराधनाएँ समूहमें करायी जाती है, बहुरत्ना वसुंधरा - १-9