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ने उसको अपनी बेटीकी तरह स्वीकार कर लिया ।
घरमें धार्मिक माहौलके कारण कु. मीना प्रतिदिन धार्मिक पाठशालामें जाने लगी। देखते ही देखते उसने नवकार महामंत्र से लेकर चैत्यवंदन, गुरुवंदन, सामायिक विधिके सूत्र और रत्नाकर पचीसी, भक्तामर स्तोत्र इत्यादि कंठस्थ कर लिये ।
बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १
वह हररोज जिनपूजा, नवकारसी और चौविहार करने लगी । प्रातः ४.३० बजे उठकर १०८ नवकार, १०८ लोगस्स और १०८ उवसग्गहरं का जप तथा अहँ नम: और सरस्वती देवीकी एक एक माला गिनती है ।
हररोज प्रातः कालमें बुजुर्गों को चरणस्पर्श करके प्रणाम करती है । जिनमंदिरमें जाते समय पाँवमें जूते भी नहीं पहनती । जिनवाणी श्रवणका सुयोग होता है तब अवश्य लाभ लेती है । जमींकंद त्याग की प्रतिज्ञा ली हुई है। दोपहर के समय में सामायिक लेकर जप और स्वाध्याय करती है । सेवा का एक भी मौका चूकती नहीं है ।
हररोज रात को सोने से पहले स्वयं स्फुरणासे प्रार्थना करती है कि 'हे प्रभु ! जगत् के सभी जीवों का दुःख मुझे मिलो और मेरा सुख सभी को मिलो । पार्श्वनाथ भगवंत की शरण प्रत्येक भवमें मिलो' ।
सभी जीवों के साथ क्षमायाचना करके, दिनभर में हुई भूलों का पश्चात्ताप करके बादमें ही शयन करती है । पूर्वजन्म के संस्कार और जगजीवनभाई के घरके वातावरण के कारण कु. मीना हररोज भावना भाती है कि 'सस्नेही प्यारा रे, संयम कब ही मिले !'
सभी माता-पिता अपनी संतानोंमें ऐसे सुंदर संस्कार डालें तो कितना अच्छा !
पता : मीनाबहन जगजीवनभाई विसनजी शाह
३४, चमन हाउस, तीसरी मंजिल, ब्लोक नं. २३,
सायन (पश्चिम) मुंबई ४०००२२.
शंखेश्वर तीर्थमें आयोजित अनुमोदना समारोहमें मीनाबहन, और जगजीवनभाई के साथ आयी थी ।
उसकी तस्वीर पेज नं. 21 के सामने प्रकाशित की गयी है ।
प
पुष्पाबहन.