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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ उन सभीमें इन तीनों बालिकाओं का नाम अवश्य होता है । वे जिनपूजा करती हैं । जमीकंदका त्याग है । इन तीनों बालिकाओं को प्रोत्साहित किया जाय तो भविष्यमें जिनशासन की उत्तम श्राविका या साध्वीजी बन सकती हैं । इन तीनों बहनों के नाम हैं अल्पाबहन, भाविषाबहन, पूजाबहन (उम्र वर्ष १६, १३, ११)
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मीराबाई जैसी प्रभुभक्त बनने की भावनावाली
। नीताबहन चंदुभाई (दरबार)
कच्छ मांडवी तालुका के मढ गाँव के निवासी चंदुभाई दरबार पिछले ३३ वर्षों से जामनगर जिले के गांगवा गाँवमें रहते हैं । उनकी ९ बेटियोंमें से सातवें क्रमांककी सुपुत्री नीताबहन (उ. व. २४) को पूर्वजन्म के संस्कारवशात् बचपनसे ही मेवाड़ की भक्त कवयित्री मीराबाई जैसी प्रभुभक्त बनने की लगन थी । मगर परिवारजनों ने जबरदस्ती से उसकी शादी धंधुका के पासमें गांगड गाँवमें कर दी थी, लेकिन कर्मसंयोगसे एक सप्ताह में ही वह ससुराल से वापिस आ गयी !
अचलगच्छीय सा. श्री आर्यरक्षिताश्रीजी और सा. श्री देवरक्षिताश्रीजी सं. २०४९ का चातुर्मास जामनगरमें करके शेषकालमें विहार करते हुए गांगवा गाँवमें पधारे । बचपन से ही सत्संग प्रेमी नीताबहन कथा सुनने के लिए उपाश्रयमें गई । साध्वीजीकी वात्सल्यपूर्ण वाणीने नीताबहन के हृदयमें वैराग्य की तरंगों को जगाया। फलतः माता-पिताकी अनुज्ञा लेकर दो महिनों तक साध्वीजी भगवंतों के साथ रहकर गिरनारजी, पोरबंदर, मांगरोल आदि तीर्थों की यात्रा की; दो प्रतिक्रमण एवं चैत्यवंदन विधिके सूत्र कंठस्थ कर लिये । वह हररोज जिनपूजा, नवकारसी चौविहार और नवकार महामंत्रका जप करती है । तीन बार अट्ठाई तप कर लिया है । कोई भी जैन साधु साध्वीजी भगवंत गांगवामें पधारते है तब वह भावसे गोचरी पानी बहोराकर सत्संग का लाभ लेती है।