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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १
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नगर की सफाई करनेवाले हरिजन लालजीभाई की
अत्यंत अनमोदनीय नीतिमत्ता
लालजीभाई गाँवकी सफाई करने के लिए नगरपालिका में नौकरी करते हैं । एक दिन सोसायटी के बंगले के पास सफाई करते हुए उनको सच्चे हीरों का हार मिला ।
. बाह्य दृष्टिसे गरीब लेकिन अंतरसे अमीर लालजीभाई ने उस हारको उठा कर पासके बंगले में रहती हुई सेठानी को उनका हार सौंप दिया ।
उनकी प्रामाणिकता का मूल्यांकन करने के लिए सेठानी ने उनको भोजन के लिए निमंत्रण दिया; मगर लालजीभाई ने उस निमंत्रणका सविनय अस्वीकार किया । सेठानीने अस्वीकार का कारण आग्रहपूर्वक पूछा तब उन्होंने स्पष्टीकरण करते हुए कहा कि 'मुझे आपकी रसोई नहीं चलती है, क्योंकि उसमें जमीकंद, और कोथमीर आदि होता है और वासी अन्न भी होता है, जब कि मेरा इन सभीका त्याग है !'
फिर भी सेठानी का आग्रह चालु रहने पर लालजीभाई ने थोड़ी सी सक्कर और चावल खाये । सेठानी ने बक्षिसके रूपमें कुछ रूपये देनेके लिए बहुत कोशिश की मगर निःस्पृही लालजीभाई ने रूपयोंकी ओर देखा भी नहीं और चले गये ।
आज जब Top to Bottom (ऊपरसे लेकर नीचे तक) सर्वत्र भ्रष्टाचार ही शिष्टाचार बनता जा रहा है, प्रामाणिकता अदृश्य सी हो रही है, व्यापारमें नीतिमत्ता अशक्यवत् out of date मानी जाती है, ऐसे कलियुगमें ऐसे विरल दृष्टांतरत्नोंमें से प्रेरणा लेकर हमें भी अपने जीवनमें नीतिमत्ता को आत्मसात् करने का शुभ संकल्प करना चाहिए ।