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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १
११९ (८) प्रातःकालमें भक्तामर स्तोत्र का पाठ एवं घरसे बाहर निकलते समय नवकार महामंत्रका स्मरण अचूक करता हूँ।
(९) हर रविवार को सुबह ११ बजे बच्चोंको जैन धार्मिक सूत्रों की अंताक्षरी सिखाता हूँ । इसमें भाग लेने वाले बच्चोंको मेरी ओरसे इनाम देता हूँ। इस कार्यक्रम में निश्रा देने के लिए मैं उपस्थित साधु साध्वीजी भगवंतों को विज्ञप्ति करता हूँ। वे भी इस कार्यक्रम से प्रसन्न होकर हमें आशीर्वाद प्रदान करते हैं ।
(१०) बीज, पाँचम और एकादशीको एकाशन तथा अष्टमी और चतुर्दशीको आयंबिल करता हूँ । एकाशनकी अपेक्षा आयंबिलमें मुझे अधिक आनंद आता है। श्रीदेव गुरुकी असीम कृपासे आज तक ९ ओलियाँ, १०८ एकाशन एवं ७६ आयंबिल कर सका हूँ। आगे भी तपश्चर्या जारी है।
__ (११) रात्रि भोजन का त्याग है । अचानक कभी बाहर जाना पड़ता है तब मुझे बहुत कठिनाई होती है । क्योंकि मैं बाजार का कुछ भी खाता नहीं हूँ और जैन भोजनशालामें मुझे अनुमति नहीं दी जाती है, जिससे मुझे कई बार भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। अतः मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आप मेरी मदद करें, ताकि राजस्थानमें किसी भी जैन भोजनशालामें मुझे अनुमति दी जाय" ।
(दिलीपभाई की इस विज्ञप्ति पर खास ध्यान देने के लिए सभी महानुभावों से खास अनुरोध है । इसी प्रकारसे अन्य भी अजैन कुलोत्पन्न जो आराधक जैन धर्मको अच्छी तरह से समर्पित हों उनको भी जैन श्रावक की तरह हर प्रकारसे सहयोग देना हमारा खास कर्तव्य है । सुज्ञेषु किं बहुना । - संपादक)
दिलीपभाई भी अनुमोदना समारोहमें पधारे थे । तस्वीर के लिए देखिए पेज नं. 25 के सामने ।
पता : दिलीपभाई बी. मालवीया वेलाजी स्ट्रीट मु.पो. पिण्डवाडा, जि. सिरोही (राजस्थान), पिन. : ३०७०२२