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किताबमें वर्णित आराधकोंके साथ मेरा भी बहुमान किया गया था । इससे मुझे अत्यंत प्रोत्साहन मिला !
बहुरत्ना वसुंधरा : भाग
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धीरे धीरे मैंने अपने परिवार के सदस्यों को भी प्रेरणा देकर उपरोक्त पापों को बंद कराने में सफलता प्राप्त की है । केवल मेरे पिताजीको एक मात्र शराबका व्यसन छुड़ानेमें असफल रहा हूँ । मगर उसके लिए भी मेरे प्रयास जारी हैं। उम्मीद रखता हूँ कि गुरुदेव की कृपासे एक दिन इसमें भी जरूर कामयाब होऊँगा ।
अब देव - गुरुकी असीम कृपासे मैंने जो संकल्प किये हैं उसका संक्षेपमें वर्णन करता हूँ और आशा रखता हूँ कि इनका अच्छी तरहसे पालन करने के लिए मुझे चतुर्विध श्री संघके आशीर्वादों का बल संप्राप्त होता रहेगा । (१) सालमें एक बार श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ दादाकी पूजा सेवा भक्ति करनी ।
(२) ३ सालमें एक बार पालीताना जाकर आदिनाथ दादाकी पूजा सेवा - भक्ति करनी ।
(३) सालमें दोनों बार नवपदजी की आयंबिल ओलीकी आराधना करता हूँ । किसी तीर्थ स्थानमें ओली की आराधना का सामूहिक आयोजन होता है तो उसमें मुझे पूजा, प्रतिक्रमण, प्रभुभक्ति आदि करनेमें अधिक आनंद आता है ।
(४) सालभर में कहीं से भी यदि बस द्वारा तीर्थयात्रा संघमें जानेका लाभ मिलता है तो मैं उसमें जरूर शामिल होनेकी भावना रखता हूँ ।
त्याग है ।
(५) आलु, प्याज, इत्यादि जमींकंद एवं बाजार की मीठाई आदिका त्याग है
(६) टी. वी., कोलगेट, और २१ महिनों तक जूते पहननेका
(७) भगवान के दर्शन किये बिना अन्न जल ग्रहण नहीं करता ।