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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ सचमुच, सत्संग रूपी पारसमणि लोहे को भी सोना बना देता है। ऐसे दृष्टांतोंमें से प्रेरणा पाकर सभी जीव सत्संग प्रेमी बनें यही शुभ
भावना।
पता : रामकुमार कैवट मु. मधुबनी, पो. अम्हारा, वाया फारसीगंज, जि. अरटिया (बिहार)
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दामाद को भी रात्रिभोजन नहीं करानेवाले
मोतिलालजी गणपतजी पाटीदार
मध्यप्रदेश के बड़वाह गांवमें रहते हुए मोतीलालजी (उ. व. ७१) पाटीदार जातिमें उत्पन्न हुए हैं और कपास के व्यापारी हैं लेकिन जैन मुनिवरों के सत्संग से कई वर्षों से उनका संपूर्ण परिवार चुस्त रूपसे जैन धर्मका पालन करता है।
मोतीलालभाई के संपूर्ण परिवारमें कोई भी रात्रिभोजन करते नहीं हैं, इतना ही नहीं किन्तु उनका कोई भी रिश्तेदार (फिर चाहे वह दामाद भी क्यों न हों !) मगर शामको सूर्यास्त के बाद उनके घर आता है तो वे उनको भी रात्रिभोजन नहीं कराते हैं।
आजकल बड़े बड़े शहरोंमें रहते हुए कई जैन श्रावक भी रात्रिभोजन का त्याग नहीं कर सकते हैं । संपूर्ण परिवार रात्रिभोजन त्यागी हो ऐसे अल्प जैन परिवार पाये जाते हैं तब एक जैनेतर परिवार के सभी सदस्य रात्रिभोजन करते न हों और करवाते भी न हों ऐसा यह दृष्टांत अत्यंत अनुमोदनीय और अनुकरणीय है। .. .. यह परिवार छना हुआ पानी ही पीता है । अन्य खाद्य सामग्री का भी जीवोत्पत्ति न हो इस प्रकारसे तना पूर्वक उपयोग करता है । साधुसाध्वीजी भगवंतोंको भी भावसे बहोराकर सुपात्र दानका लाभ लेता है ।