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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १
१०५ हालमें मोतीलालजी को कर्म संयोग से पक्षाघातका हमला हुआ है फिर भी वे प्रतिदिन पैदल चलकर व्याख्यान श्रवणके लिए अचूक जाते हैं । जिनवाणी श्रवण का कैसा अनुमोदनीय रस है !
संपूर्ण परिवार को हार्दिक धन्यवाद । पता : मोतीलालजी गणपतजी पाटीदार, मु. पो. बड़वाह, जि. खरगोन (मध्यप्रदेश)
अनानुपूर्वी से प्रतिदिन नवकार जप करते हुए
जाड़ेजा करसनजी हाजाजी
कच्छ-मांडवी तालुका के डुमरा गाँवमें वि. सं. २०४७ में अचलगच्छीय सा. श्री सुरेन्द्र श्रीजी आदिका चातुर्मास हुआ था । तब उनके सत्संगसे करसनजी जाडेजा (उ. व. ६५) को जैन धर्म का रंग लगा । इस चातुर्मास में उन्होंने अठ्ठाई की और जिनपूजा, चौविहार इत्यादि का प्रारंभ किया। तबसे लेकर प्रत्येक चातुर्मासमें छोटी बड़ी सामूहिक तपश्चर्या एवं आराधनाओंमें वे अचूक शामिल होते हैं । सं. २०४९ के चातुर्मास में उन्होंने समवरण तप भी किया था । नवपदजी और वर्धमान आयंबिल तपकी ओलीयाँ भी वे करते हैं।
भूजसे शंखेश्वरजी और शंखेश्वरजी से कच्छ ७२ जिनालय तीर्थ के छ'री पालक संघोंमें शामिल होकर उन्होंने पैदल तीर्थयात्राएं की हैं । इसके अलावा समेतशिखरजी, शत्रुजय आदि अनेक जैन तीर्थों की यात्राएँ भी उन्होंने की हैं।
वे हररोज अनानुपूर्वीसे नवकार महामंत्रका जप करते हैं । अनानुपूर्वीकी किताबमें १ से ९ तकके अंक बिना क्रमसे लिखे हुए होते हैं । उसमें एक के बाद एक जो अंक लिखा हुआ होता है उसके अनुसार नवकार महामंत्रका पद मनमें बोलने का होता है । जैसे कि ३ लिखा हो तो नवकार महामंत्रका तीसरा पद 'नमो आयरियाणं' बोलना चाहिए और