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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १
१०३ आचार्य भगवंत की पुनीत निश्रामें ९ दिन आयंबिल पूर्वक नवपदजी की. ओली की सुंदर आराधना की। उसके बाद उसने उपधान तप की आराधना भी चढते परिणाम से की । मद्रास जैन संघने उसका अच्छी तरह से बहुमान किया ।
आज जैनकुलोत्पन्न भी कई ऐसे श्रावक - श्राविकाएँ होंगे जिन्होंने ४०-५० साल की उम्रमें भी शायद एक भी आयंबिल नहीं किया होगा अथवा एक बार भी नवपदजी की ओली नहीं की होगी । ऐसी आत्माओंको, इस खाटकी युवक नबी के दृष्टांतमें से खास प्रेरणा ग्रहण करके, आयंबिल आदि तपश्चर्या के लिए पुरुषार्थ करना चाहिए ।
सचित्त पानी भी नहीं पीता रामकुमार कैवट (खलासी)
- बिहार के मधुबनी गाँवमें रहता हुआ रामकुमार, कैवट जातिमें उत्पन्न हुआ है । जाति के संस्कार के अनुसार इन के परिवार में मांसाहार स्वाभाविक रूपसे होता था । मगर उनके पडोशी गाँव फारसीगंजमें चातुर्मास विराजमान सुमेरमुनिजी और विनोदमुनिजी के सत्संगसे उसने मांस मदिरा आदि सात महाव्यसनों के त्यागकी प्रतिज्ञा ली। इतना ही नहीं मगर अपने परिवारमें भी मांसाहार सर्वथा बंद करा दिया ।
उसके बाद करीब १२ साल बिहार, बंगाल, आसाम, ओरिस्सा, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्रमें उपरोक्त मुनिवर और उनके गुरु बंधुओं के साथ रहकर वैयावच्च का लाभ लेता है । फलतः वह सचित्त पानी भी नहीं पीता है । रात्रिभोजन नहीं करता है और प्रतिदिन सामायिक करता है। नवकार महामंत्रकी माला फेरता है । मुनिवरोंकी सेवा करते हुए उसने सुंदर धार्मिक ज्ञान प्राप्त कर लिया है । उपवास, अठ्ठम और अछाई तक तपश्चर्या कर ली है । साधु संतोंकी सेवा अत्यंत भावपूर्वक करता है ।